श्री गणेशाय नमः
Devotional Thoughts
Devotional Thoughts Read Articles सर्वसामर्थ्यवान एवं सर्वशक्तिमान प्रभु के करीब ले जाने वाले आलेख (हिन्दी एवं अंग्रेजी में)
Articles that will take you closer to OMNIPOTENT & ALMIGHTY GOD (in Hindi & English)
Precious Pearl of Life श्रीग्रंथ के श्लोकों पर छोटे आलेख (हिन्दी एवं अंग्रेजी में)
Small write-ups on Holy text (in Hindi & English)
Feelings & Expressions प्रभु के बारे में उत्कथन (हिन्दी एवं अंग्रेजी में)
Quotes on GOD (in Hindi & English)
Devotional Thoughts Read Preamble हमारे उद्देश्य एवं संकल्प - साथ ही प्रायः पूछे जाने वाले प्रश्नों के उत्तर भी
Our Objectives & Pledges - Also answers FAQ (Frequently Asked Questions)
Visualizing God's Kindness वर्तमान समय में प्रभु कृपा के दर्शन कराते, असल जीवन के प्रसंग
Real life memoirs, visualizing GOD’s kindness in present time
Words of Prayer प्रभु के लिए प्रार्थना, कविता
GOD prayers & poems
प्रभु प्रेरणा से लेखन द्वारा चन्द्रशेखर करवा

लेख सार : अनुकूलता में तो प्रभु की कृपा एक साधारण संसारी भी देख लेता है पर सच्चा भक्त वही है जो प्रतिकूलता में भी प्रभु की असीम कृपा को ढूंढ निकालता है और प्रतिकूलता को भी प्रभु की कृपा प्रसादी मानता है । पूरा लेख नीचे पढ़ें -



भक्‍त हर अनुकूल और घोर प्रतिकूल परिस्थिति में भी प्रभु की कृपा को ढूंढ लिया करते हैं । सच्चे भक्त का एक सबसे बड़ा गुण यह होता है कि वह हर परिस्थिति में प्रभु की छिपी कृपा को ढूंढ लेता है ।


भक्ति की सही कसौटी यही है कि हर अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थिति में प्रभु की कृपा के दर्शन करना । हमारी भक्ति परिपक्व हुई या नहीं यह जानने का सबसे सटीक तरीका भी यही है कि क्या हम प्रतिकूलता में प्रभु कृपा के दर्शन कर पाते हैं ।


उदाहरण स्वरूप देखें कि एक भक्त का अपनी पत्नी से क्लेश हो जाए तो भक्‍त यह मानेगा कि मेरे ऊपर मेरे प्रभु ने असीम कृपा की, नहीं तो मेरा जन्म नारी के पीछे बर्बाद हो जाता । जो जगत को अकृपा प्रतीत होती है वह भक्‍त को सदैव प्रभु कृपा के रूप में दिखती है । जैसे दूसरा उदाहरण लें कि व्यापार में धन का नुकसान हुआ तो वह भक्त यह मानेगा कि प्रभु मुझे वैभव से बचाना चाहते थे जिस कारण जीव प्रभु से दूर हो जाता है । तीसरा उदाहरण लें कि अगर जवान बेटा मर गया तो भक्‍त यह मानेगा कि प्रभु ने कृपा की और मुझे पुत्र मोह से निजात दिलाने के लिए ऐसा हुआ ।


भक्‍त का एक सहज गुण होता है कि उसे हर परिस्थिति में प्रभु कृपा सहज रूप से ही दिखाई देती है । उसे हर अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थिति में सहज रूप से मात्र और मात्र प्रभु कृपा ही दिखाई देती है । हम संसारी को अनुकूल परिस्थिति में तो प्रभु कृपा दिखती है पर प्रतिकूल परिस्थिति में भी प्रभु कृपा देखने से हम चूक जाते हैं । प्रतिकूल परिस्थिति में भी प्रभु कृपा देखने की कला मात्र और मात्र सच्चे भक्त को आती है ।


कितने भक्तों की जीवनी में यह तथ्य साफ झलकता है कि उन्होंने अनुकूलता से भी ज्यादा प्रतिकूलता में प्रभु कृपा के दर्शन किए । अनुकूलता में तो प्रभु कृपा के दर्शन सभी कर लेते हैं पर प्रतिकूलता में प्रभु कृपा के दर्शन करना सबसे बड़ी बात है ।


सच्चे भक्त प्रतिकूलता को प्रभु की कृपा प्रसादी मानते हैं । प्रतिकूलता जब भी आती है वह हमें संसार से विरक्त करती है । वैराग्य, चाहे वह क्षणिक समय के लिए ही क्यों न हो, हमारे भीतर जगता है । संसार से विरक्ति और वैराग्य हमें प्रभु की ओर मोड़ने में सबसे अहम भूमिका निभाते हैं ।


जब प्रतिकूलता आती है तो सच्चे भक्त अपना भजन और अधिक बढ़ा देते हैं । सच्चे भक्त की निशानी होती है कि वह कभी प्रभु से प्रतिकूलता की शिकायत नहीं करते क्योंकि वे प्रतिकूलता को भी प्रभु की कृपा प्रसादी ही मानते हैं । संसारी जीव प्रतिकूलता आने पर प्रभु से शिकायत करता है पर भक्‍त ऐसा कभी नहीं करता । संसारी जीव प्रतिकूलता से डर जाता है पर भक्‍त प्रतिकूलता को गले लगाता है ।


भगवती कुन्‍तीजी का दृष्टान्त यहाँ सबसे उपयुक्त है जिन्होंने प्रभु से प्रतिकूलता मांगी क्योंकि प्रतिकूलता में प्रभु की अधिक याद आती है और प्रभु का सानिध्य हमें निरंतर मिलता है ।


इसलिए हमें अनुकूलता और प्रतिकूलता दोनों ही अवस्था में प्रभु कृपा देखने की कला सीखनी चाहिए । जब हम यह कला सीख जाते हैं तो हमारी भक्ति दृढ़ होती चली जाती है । सच्चा भक्त प्रतिकूलता का भी स्वागत करता है क्योंकि उसमें भी वह प्रभु की कोई छिपी हुई कृपा को खोज निकालता है ।