लेख सार : धन-सम्पत्ति, मान-प्रतिष्ठा, सांसारिक सुख यह सब प्रभु की साधारण कृपा है । प्रभु की सबसे बड़ी कृपा भक्ति का दान है जिसे पाकर जीव प्रभु तक पहुँच जाता है । पूरा लेख नीचे पढ़ें -
अगर हम जीवन में प्रभु की तरफ थोड़ा भी अग्रसर होने में सफल होते हैं तो उसका अहंकार पालना एक गलत कदम होगा क्योंकि वह हमारा पतन करा देगा । इसे अपने पुण्य के रूप में प्रारब्ध मानना भी गलत होगा । इसे देखने का सबसे श्रेष्ठ तरीका यह मानना है कि मेरे कृपासिंधु प्रभु ने मुझ पर विशेष कृपा की है और अपनी तरफ बढ़ने का मार्ग मेरे लिए खोल दिया है ।
प्रभु की तरफ बढ़ने का मार्ग केवल और केवल प्रभु कृपा के बल पर ही खुलता है । यह सिद्धांत सदैव जीवन में याद रखना चाहिए कि प्रभु की कृपा के बिना हम प्रभु मार्ग पर अग्रसर नहीं हो सकते । इसे याद रखने का दूसरा बड़ा फायदा यह होगा कि हमें अपने पुरुषार्थ पर अहंकार नहीं होगा ।
प्रभु मार्ग में चलने पर अगर हम काम, क्रोध, मद, लोभ से निजात भी पा जाते हैं तो भी अहंकार, जिसकी ताकत इन चारों की संयुक्त ताकत से भी ज्यादा है, वह हमारा पतन करा देता है । प्रभु की कृपा का सर्वत्र दर्शन करना ही अहंकाररूपी दोष और उसके कारण पतन को रोकने का सर्वश्रेष्ठ और एकमात्र उपाय है ।
हमें प्रभु की भक्ति प्रभु कृपा के कारण ही मिलती है, नहीं तो न जाने कितने व्यक्ति ऐसे हैं जिन्हें माया ने इस तरह जकड़ रखा है कि वे संसार में ही उलझे रहते हैं । कोई व्यापार में उलझा रहता है और रात दिन धन कमाने में जुटा रहता है । कोई दुनियादारी में उलझा रहता है और रात-दिन उसी में लगा रहता है । कोई पुत्र, पौत्र में उलझा रहता है और उनके लालन-पालन में ही लगा रहता है । कोई पत्नी में उलझा रहता है और उसे खुश रखने में ही लगा रहता है ।
प्रभु की कृपा होती है तो जीव इन सबसे ऊपर उठकर प्रभु की तरफ अग्रसर होता है । वह प्रभु को रिझाने लगता है और जीवन में प्रभु को जानने का प्रयास करता है । उसकी दिनचर्या प्रभुमय हो जाती है । सोते-जागते, खाते-पीते उसका ध्यान प्रभु में अटक जाता है । वह अपना जीवन प्रभु को समर्पित कर देता है और इस तरह प्रभु के साक्षात्कार के लिए वह अपने आपको प्रस्तुत कर देता है ।
प्रभु की तरफ अगर हमारा रुझान हुआ है तो इसे प्रभु कृपा ही माननी चाहिए । प्रभु यह कृपा तब करते हैं जब जीव एक कदम प्रभु की तरफ बढ़ाता है । जीव जब संसार से हटकर अपना ध्यान प्रभु में केंद्रित करता है तो प्रभु अपनी कृपा उस पर बरसाते हैं । उसके जीवन में भक्ति का उदय होता है और वह भक्ति मार्ग पर प्रभु को पाने के लिए आगे बढ़ता जाता है ।
प्रभु की जीव पर सबसे बड़ी यही कृपा होती है कि प्रभु अपनी तरफ आने के लिए अपने दरवाजे उस जीव के लिए खोल देते हैं । किसी को धन, संपत्ति, वैभव, प्रतिष्ठा, रूप मिला है तो यह प्रभु की साधारण कृपा है । पर सबसे बड़ी प्रभु की कृपा यह है कि उसे भक्ति मिली है जो उसे प्रभु के द्वार तक पहुँचा देती है ।
इसलिए जीव को चाहिए कि प्रभु की इस बड़ी कृपा को जीवन में पाने का सदैव प्रयास करे । इसके लिए उसे अपना पहला कदम प्रभु की तरफ बढ़ाने की आवश्यकता है । पहला कदम प्रभु की तरफ बढ़ते ही प्रभु, जो कि कृपासिंधु हैं और कृपा करने में देर नहीं करते, वे उस जीव पर कृपा करके भक्ति के द्वारा उसे अपने पास बुला लेते हैं ।