लेख सार : जीव का प्रभु से ही एकमात्र सनातन संबंध है । जीव को प्रभु पूरी आजादी देकर संसार में भेजते हैं । पर जो जीव संसार और माया में न उलझकर भक्ति द्वारा प्रभु प्राप्ति का ही लक्ष्य जीवन में रखता है वह प्रभु को अति प्रिय होता है । पूरा लेख नीचे पढ़ें -
एक चिड़िया जो कि पिंजरे में कैद है और उस पिंजरे का द्वार खोल दिया जाए तो वह बाहर उड़ जाएगी । पर वह चिड़िया हमारे पास बहुत समय से रहती थी और हम उसे प्यार करते, खाना देते थे । इस प्यार के कारण उड़ जाने के बाद भी कुछ समय के बाद वह वापस पिंजरे में स्वतः ही आ जाए तो हमें कितना अच्छा लगेगा । हम सोचेंगे कि चिड़िया हमसे कितना प्यार करती है जिस कारण आजाद होने के बाद भी वह वापस पिंजरे में अपनी इच्छा से स्वतः आ गई । आजाद होने के बाद भी वह हमारे प्रेम बंधन में रहना चाहती है ।
ऐसे ही प्रभु ने हमें संसार में भेजकर आजाद कर दिया और अगर हम माया में न उलझकर प्रभु के प्रेम पिंजरे में स्वतः वापस आ जाते हैं तो प्रभु को कितना अच्छा लगेगा । प्रभु ने हमें सच्ची आजादी देकर संसार में भेजा है । हम संसार में, माया में अपना जीवन व्यतीत कर सकते हैं । अधिकतर लोग ऐसा करते भी हैं । पर कुछ बिरले जो कि प्रभु के सच्चे प्रेमी भक्त होते हैं वे इस संसार और माया को त्यागकर भक्ति के द्वारा प्रभु के सानिध्य में वापस आ जाते हैं ।
सच्चे भक्तों को कभी संसार और माया प्रभावित नहीं कर पाती । वे संसार और माया को लाँघकर प्रभु सानिध्य में वापस आ जाते हैं । भगवती मीराबाई की जीवनी में इसका जीवंत उदाहरण देखने को मिलता है । एक राजघराने में विवाह होने के बाद भी महल, दास, दासी, वस्त्र, आभूषण का सुख उन्हें बांध नहीं सका । वे प्रभु प्रेम में अपना जीवन व्यतीत करना चाहती थी और सब कुछ त्यागकर वे श्री वृंदावनजी आ गई । उन्होंने संसार और माया को त्यागकर प्रभु प्रेम में अपना जीवन व्यतीत किया । रानियों का और महल का सुख छोड़ना बड़ी परीक्षा थी पर वे भक्ति के कारण इसमें उत्तीर्ण हुई । उनकी भक्ति परिपक्व थी और अंत समय प्रभु दर्शन देकर सशरीर उन्हें अपने धाम ले गए ।
हम भी संसार में उड़ने के लिए स्वतंत्र हैं पर फिर भी माया से प्रभावित न होकर अगर हम प्रभु सानिध्य में रहने का मानस बनाते हैं तो प्रभु हमसे अति प्रसन्न होते हैं । जीवात्मा परमात्मा का अंश है । प्रभु चाहते हैं कि अंशी और अंश का साथ रहे पर माया बीच में आकर अंश को अंशी से दूर कर देती है । माया का यही कार्य है जो वह बड़ी निपुणता से करती है । पर जीव अगर अपने विवेक और बुद्धि से संभल जाए और माया के प्रभाव से बचकर प्रभु सानिध्य में आ जाए तो उसका निश्चित कल्याण हो जाता है ।
जैसे पिंजरे से मुक्त हुई चिड़िया के पिंजरे में वापस आने से हमें अच्छा लगता है क्योंकि हमें समझते देर न लगती है कि उसका हमसे सच्चा प्रेम है । इसी प्रकार संसार और माया को त्यागकर जो प्रभु सानिध्य में वापस आ जाता है प्रभु को वह जीव अत्यन्त प्रिय लगता है क्योंकि प्रभु जान लेते हैं कि वह जीव प्रभु से सच्चा प्रेम करता है ।
इसलिए जीव को चाहिए कि वह संसार और माया से प्रभावित न हो अपना रुझान सदैव प्रभु की तरफ रखे । ऐसे जीवों की प्रभु प्रतीक्षा करते हैं, उनकी बाट जोहते हैं । प्रभु हर जीव से प्रेम करते हैं पर जब वह जीव भी प्रभु से प्रेम करे तो प्रभु को सबसे ज्यादा प्रसन्नता होती है ।