श्री गणेशाय नमः
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प्रभु प्रेरणा से लेखन द्वारा चन्द्रशेखर करवा

लेख सार : प्रभु द्वारा प्रदान बुद्धि के बल पर ही मानव विज्ञान के क्षेत्र में आविष्कार या प्रगति करता है । मानव को प्रदान बुद्धि प्रभु की मानव पर सबसे बड़ी अनुकम्पा है । पूरा लेख नीचे पढ़ें -



प्रभु द्वारा प्रदान की गई बुद्धि के कारण मानव अभिमान कर बैठता है । उसे अपनी क्षमता का अभिमान हो जाता है, जो एकदम गलत है । बुद्धि हमारी अपनी नहीं है, यह प्रभु द्वारा प्रदान की हुई है । प्रभु द्वारा प्रदान उस बुद्धि के बल पर हम विज्ञान के क्षेत्र में नए-नए आविष्कार करते हैं, प्रगति करते हैं और अपनी क्षमता पर अभिमान कर बैठते हैं ।


हमारी क्षमता कहाँ से आई ? यह प्रभु द्वारा प्रदान बुद्धि के बल पर आई है । प्रभु अगर मानव को बुद्धि नहीं देते तो वह कुछ भी नहीं कर पाता । इसलिए हमें अपनी बुद्धि द्वारा की गई प्रगति पर अभिमान नहीं होना चाहिए अपितु प्रभु के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन का भाव होना चाहिए ।


आज हम विज्ञान के बल पर सुपर कंप्यूटर और रोबोट बनाते हैं । पर इसके आविष्कार के पीछे मानव बुद्धि है जो कि प्रभु द्वारा प्रदान की गई है । प्रभु ने जानवरों को मानव समान बुद्धि नहीं दी इसलिए जानवर विज्ञान का कोई आविष्कार नहीं कर पाते । प्रभु अगर जानवरों के भांति हम मानव को भी बुद्धि नहीं देते तो मानव भी कुछ नहीं कर पाता ।


हमने प्रभु द्वारा प्रदान बुद्धि के बल पर विज्ञान के क्षेत्र में बहुत प्रगति कर ली, ऐसा अहंकार जब हो तो इतना सोचना चाहिए कि क्या हमारे पास प्रभु द्वारा बनाई चींटी की आँख का ऑपरेशन करने की क्षमता या उसके लिए औजार हैं । प्रभु ने चींटी, जो आँखों से दिखती है, उससे भी छोटे कितने जीव बनाए हैं जो आँखों से नहीं दिखते । सृष्टि के उन नहीं दिखने वाले जीव जैसे बैक्टीरिया इत्यादि का भी पोषण प्रभु करते हैं । एक चींटी की भी आँख, पेट आदि सभी जगह होने वाली पीड़ा का इलाज अप्रत्यक्ष रूप से प्रभु करते हैं । क्या हम ऐसा कर सकते हैं ? विज्ञान की इतनी प्रगति के बाद भी हम ऐसा कदापि नहीं कर सकते ।


हमारी क्षमता आज भी कुछ नहीं है और 1000 वर्ष या 10000 वर्ष के विकास के बाद भी प्रभु के आगे कुछ नहीं होगी । प्रभु के आगे हमारी क्षमता नगण्य थी, नगण्य है और सदैव नगण्य ही रहेगी ।


हमें सदैव इस तथ्‍य का भान रहना चाहिए तभी हमारे भीतर अपनी क्षमता का अहंकार नहीं पनपेगा । जब भी हम कुछ नया आविष्कार करते हैं या वैज्ञानिक प्रगति करते हैं तो हमें बस इतना ही सोचना चाहिए कि यह किसके बल पर हुई ? यह वैज्ञानिक प्रगति या आविष्कार प्रभु द्वारा प्रदान हमारी बुद्धि के बल पर हुई ।


प्रभु द्वारा प्रदान की गई बुद्धि के बल पर ही हम सब कुछ करते हैं तो उस प्रगति या आविष्कार का श्रेय भी प्रभु को ही जाता है । मानव तो मात्र निमित्त बनता है उस प्रगति या आविष्कार का पर सच्चा श्रेय तो प्रभु को ही जाता है ।


इसलिए जीव को चाहिए कि वह अपनी क्षमता के अभिमान में नहीं रहे और प्रभु द्वारा प्रदान बुद्धि को प्रभु की मानव पर सबसे बड़ी अनुकम्पा मानकर सदा प्रभु का ऋणी रहे । सच्चा भक्त कभी भी किसी उपलब्धि को अपना नहीं मानता अपितु सदा उसका श्रेय प्रभु को देता है क्योंकि उसे पता होता है कि वह तो मात्र निमित्त है ।