श्री गणेशाय नमः
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प्रभु प्रेरणा से लेखन द्वारा चन्द्रशेखर करवा

लेख सार : जीवन के हर प्रसंग में प्रभु कृपा के दर्शन करने की कला हमें आनी चाहिए । जितनी-जितनी हमारी भक्ति प्रगाढ़ होगी उतनी-उतनी प्रभु कृपा हमें सर्वत्र दिखेगी । पूरा लेख नीचे पढ़ें -



सच्चा भक्त कभी यह मानने को तैयार ही नहीं होता कि उसमें कुछ पात्रता है या कुछ सामर्थ्य है । वह केवल और केवल प्रभु की अनुकम्‍पा और प्रभु की कृपा का ही दर्शन सर्वत्र करता है ।


सच्चे भक्‍त की यह निशानी होती है कि उसे सर्वत्र प्रभु कृपा और प्रभु अनुकम्‍पा के ही दर्शन होते हैं । उदाहरण स्वरूप देखें कि बीमारी में उस भक्‍त का एक प्रियजन अस्पताल में भर्ती हुआ । उस भक्‍त को डॉक्टर और दवाई पर विश्वास नहीं होगा । वह उन्हें मात्र एक सांसारिक माध्यम मानेगा पर उसे विश्वास सिर्फ और सिर्फ प्रभु की कृपा पर ही होगा । अगर दवाई अपना काम करती है तो वह दवाई या डॉक्टर की कोई उपलब्धि नहीं मानेगा, वह उस दवाई को प्रभु कृपा के रूप में देखेगा । उसका मानना होगा कि प्रभु ने कृपा की और दवाई के माध्यम से रोगी को राहत मिली ।


यहाँ तक कि सच्चे भक्‍त को उसके द्वारा की जाने वाली भक्ति भी प्रभु अनुकम्‍पा का ही फल दिखती है । क्योंकि वह मानता है कि उसका कोई सामर्थ्य नहीं प्रभु की भक्ति करने का, उसका कोई भाग्य नहीं कि प्रभु भक्ति उससे हो पाए, यह तो केवल प्रभु कृपा है कि वह भक्ति पथ पर अग्रसर हो पा रहा है । उसने प्रभु की सेवा की, यह भाव भक्त के अंदर कभी नहीं आएगा बल्कि प्रभु ने सेवा करवाई यानी प्रभु ने अनुकम्‍पा की और उसकी सेवा स्वीकार की, यह भाव उसके भीतर जागृत होगा ।


सब चीजों में, सभी जगह प्रभु कृपा के दर्शन करने की कला भक्‍त को आती है । जैसे-जैसे हम प्रभु की कृपा के दर्शन करना सीख जाते हैं वैसे-वैसे प्रभु की भक्ति और प्रभु के प्रति हमारा प्रेम बढ़ता जाता है । हम साक्षात हर जगह और हर समय प्रभु कृपा का अनुभव अपने आसपास करते चले जाते हैं ।


बड़ी बात में प्रभु कृपा का अनुभव तो बहुत से लोग कर लेते हैं । उदाहरण स्वरूप कोई व्यक्ति गाड़ी से कहीं जा रहा है और कोई बड़ी दुर्घटना हो गई और वह बाल-बाल बच गया तो वह प्रभु की कृपा को मानेगा । पर उसमें और भक्त में फर्क यह है कि भक्त हर छोटी से छोटी चीज में भी प्रभु कृपा के दर्शन करने की क्षमता विकसित कर लेता है ।


प्रभु की कृपा के दर्शन छोटे से छोटे प्रकरण में हमें होने लगे तभी मानना चाहिए कि हमारी भक्ति सिद्ध हुई है । भक्तों और संतों की जीवनी में यह बात साफ दिखती है कि हर छोटे, बड़े, अच्छे, बुरे प्रकरण में उन्हें प्रभु कृपा के दर्शन हुए । भक्‍त श्री नरसी मेहताजी का बेटा जवानी में चल बसा तो उन्होंने उसमें भी प्रभु कृपा के दर्शन किए और उस दिन भी प्रभु का खूब ज्यादा भजन किया । सच्चे भक्त की निशानी यही होती है कि उसे प्रभु कृपा के अलावा कुछ दिखता ही नहीं । हर प्रकरण में वह प्रभु कृपा को खोज निकालता है ।


हमें भी हर जगह प्रभु कृपा देखने की दृष्टि विकसित करनी चाहिए । प्रभु कृपा के दर्शन जितना हम करते चले जाएंगे उतनी ही प्रभु कृपा हमारे जीवन में फलीभूत होती चली जाएगी ।


प्रभु कृपा का सदैव दर्शन करना भक्ति का एक स्वरूप है । हर अनुकूलता और हर प्रतिकूलता में प्रभु कृपा का दर्शन करने की कला हमें आनी चाहिए । सच्चा भक्त प्रभु कृपा को सर्वत्र देखता है और उसके लिए सदैव प्रभु को धन्यवाद देता रहता है ।