लेख सार : प्रभु तक पहुँचने का मार्ग प्रभु की कृपा होने पर बड़ा सुलभ है । जरूरी यह है कि हम माया में न उलझें और प्रभु की कृपा अर्जित करने में सफल हो जाएँ । पूरा लेख नीचे पढ़ें -
प्रभु तक पहुँचने का रास्ता प्रभु की कृपा नहीं होने पर बहुत कठिन है । पर यह कठिनाई तब दूर हो जाती है जब प्रभु कृपा करते हैं । प्रभु कृपा तब करते हैं जब जीव प्रभु तक पहुँचने हेतु मन बनाकर पहला कदम उठाता है । पहला कदम उठाते ही प्रभु कृपा बरसाते हैं और जीव प्रभु की कृपा की सीढ़ी चढ़ता हुआ प्रभु तक धीरे-धीरे पहुँच जाता है ।
प्रभु तक पहुँचने के रास्ते में माया आती है । माया हमें प्रभावित करती है और हम भटक जाते हैं । माया की चकाचौंध ऐसी होती है कि वह हमें अपनी ओर आकर्षित कर लेती है ।
हमारे नेत्रों को प्रभु का रूप देखना चाहिए पर माया हमारे नेत्रों को सुन्दर सांसारिक दृश्य दिखाती है । हमारे कानों को प्रभु कथा और भजन सुनना चाहिए पर माया उन्हें आधुनिक संगीत और दुनियादारी की व्यर्थ बातें सुनाती है । माया इस तरह हमारे शरीर के प्रत्येक अंग को प्रभावित करती है और हमें प्रभु से दूर कर देती है ।
जीव धन कमाने में, परिवार पालने में अपना बहुमूल्य मानव जीवन लगा देता है । प्रभु के लिए उसके पास समय ही नहीं होता । इस तरह प्रभु तक पहुँचने का रास्ता उसके लिए बहुत कठिन बन जाता है । संसार में आसक्ति इतनी हो जाती है कि प्रभु तक पहुँचने के मार्ग में वह प्रगति ही नहीं कर पाता ।
पर फिर कोई श्रीग्रंथ, कोई सत्संग, कोई संत उसे जगाने का काम करते हैं । कभी-कभी जीवन में विपत्ति आती है जैसे व्यापार में नुकसान या किसी प्रिय का निधन इत्यादि जिससे वह संसार से निकलकर प्रभु की तरफ मुड़ता है ।
माया फिर भी उसे संसार में वापस खींचने का प्रयास करती है । पर अगर वह जीव एक कदम प्रभु की तरफ उठा लेता है तो प्रभु हस्तक्षेप करते हैं और अपनी कृपा दृष्टि उस पर डालते हैं । फिर माया वैसे भागती है जैसे सूर्योदय के बाद कोहरा भागता है । प्रभु का हस्तक्षेप हुआ कि माया का प्रभाव सदा-सदा के लिए समाप्त हो जाता है ।
जीव प्रभु की तरफ एक कदम बढ़ाता है तो प्रभु अनेक श्रीकदम जीव की तरफ बढ़ाते हैं । प्रभु सदैव इस बात का इंतजार करते रहते हैं कि जीव प्रभु की तरफ कदम बढ़ाए, प्रभु के सानिध्य में आने का मानस बनाए । एक बार जीव मानस बनाता है तो प्रभु की कृपा उसे प्रभु तक पहुँचाने का कार्य करती है ।
जीव का सामर्थ्य नहीं कि वह अपने बल पर प्रभु तक पहुँच सके । उसे प्रभु की कृपा का आश्रय लेना ही पड़ता है तभी वह प्रभु तक पहुँच पाता है ।
प्रभु जीव पर कृपा करने के लिए तैयार बैठे हैं पर हम उस कृपा को पाने के लिए आगे नहीं बढ़ते । जैसे ही हम आगे बढ़ते हैं प्रभु की कृपा अपना काम करती है और हमें प्रभु तक पहुँचाने का साधन बन जाती है ।
इसलिए जीवन की किसी भी अवस्था में हम हो, हमें पहला कदम प्रभु की तरफ अविलम्ब बढ़ाना चाहिए । प्रभु तक पहुँचने का रास्ता बड़ा कठिन भी है और बड़ा आसान भी है । अगर हम माया में उलझ रहे हैं तो यह बड़ा कठिन है और अगर हमें प्रभु की कृपा मिल गई तो प्रभु तक पहुँचने का मार्ग बहुत आसान है ।