लेख सार : जीव संसार से स्वार्थ का रिश्ता रखता है । संसार भी जीव से स्वार्थ का रिश्ता रखता है । एक प्रभु ही हैं जो जीव से निस्वार्थ रिश्ता रखते हैं । इसलिए जीव को प्रभु से निस्वार्थ रिश्ता बनाना चाहिए और इसके लिए प्रभु की निष्काम भक्ति करनी चाहिए । पूरा लेख नीचे पढ़ें -
दुनिया के सभी रिश्ते स्वार्थ पर टिके हुए हैं । सिर्फ प्रभु ही जीव से ऐसा रिश्ता रखते हैं जो निस्वार्थ है, जिसमें कोई स्वार्थ जुड़ा नहीं होता ।
दुनिया के रिश्ते की चर्चा करें तो पाएंगे कि सभी रिश्ते किसी ने किसी स्वार्थ पर टिके हुए हैं । पति पत्नी का रिश्ता स्वार्थ पर टिका हुआ है । पत्नी का स्वार्थ होता है कि पति कमाकर लाए । पति का स्वार्थ होता है कि पत्नी उसे कामसुख दे और वंश वृद्धि के लिए संतान दे । पिता पुत्र का रिश्ता भी स्वार्थ पर टिका हुआ है । पुत्र चाहता है कि पिता उसकी अच्छी तरह परवरिश करे । पिता चाहता है कि पुत्र उसके बुढ़ापे की लाठी बने, बुढ़ापे में उसकी सेवा करे ।
जीव और प्रभु का जो रिश्ता होता है उसमें भी जीव प्रभु से स्वार्थ रखता है कि प्रभु उसे धन, पुत्र, पौत्र दें । एकमात्र प्रभु ही हैं जो जीव से निस्वार्थ रिश्ता रखते हैं । प्रभु कोई स्वार्थ नहीं रखते । प्रभु का क्या स्वार्थ हो सकता है ? प्रभु जीव पर निस्वार्थ ही अनुग्रह करते हैं । इसलिए प्रभु का जीव से जो रिश्ता होता है वह सबसे पवित्र और सबसे महान होता है ।
प्रभु कभी स्वार्थ नहीं रखते कि जीव मेरी पूजा करे, भजन करे, स्तुति करे तभी मैं (प्रभु) जीव की मदद करूँगा । प्रभु जीव की सभी प्रकार से मदद करते हैं, उसका साथ निभाते हैं । सांसारिक पिता हमसे स्वार्थ रख सकता है पर परमपिता कभी कोई स्वार्थ नहीं रखते ।
प्रभु सर्वसामर्थ्यवान है उन्हें हमसे कोई अपेक्षा नहीं होती । एक सांसारिक पिता को अपेक्षा होती है कि बुढ़ापे में पुत्र उसकी सेवा करे पर प्रभु को जीव से कोई अपेक्षा नहीं होती क्योंकि प्रभु सर्वसामर्थ्यवान है और सब कुछ करने में समर्थ हैं ।
इसलिए जीव को चाहिए कि ऐसे निस्वार्थ रिश्ते को मजबूत बनाए और प्रभु की पूर्ण रूप से भक्ति करे । भक्ति प्रभु के रिश्ते को दृढ़ करने का सबसे श्रेष्ठ साधन है । भक्ति में जीव को निस्वार्थ होना चाहिए । अगर हम निष्काम भक्ति करते हैं यानी भक्ति के एवज में कुछ मांग नहीं करते तो प्रभु जल्दी प्रसन्न होते हैं । प्रभु हमसे निस्वार्थ रिश्ता रखते हैं और प्रभु को वह जीव सबसे अधिक प्रिय होता है जो प्रभु से निष्काम भक्ति द्वारा निस्वार्थ रिश्ता रखता है ।
जो भी श्रेष्ठ भक्त हुए हैं उन्होंने सदैव प्रभु से निस्वार्थ रिश्ता रखा । भक्तों ने प्रभु की भक्ति करके अपनी भक्ति को किसी मांग से नहीं भुनाया । सच्ची भक्ति वही है जिसमें कोई मांग नहीं हो । वैसे भी हमें कुछ मांगने की आवश्यकता नहीं क्योंकि प्रभु को हमारी जरूरतों का पता होता है । जैसे एक माता को अपने छोटे से बच्चे की जरूरत का पता होता है और वह जरूरत से पहले ही वह चीज बच्चे को उपलब्ध कराती है वैसे ही प्रभु भक्तों की जरूरत से पहले ही भक्तों को उनकी जरूरत की वस्तुएँ उपलब्ध करवाते हैं ।
हम प्रभु से निस्वार्थ रिश्ता रखते हैं तो यह प्रभु का दायित्व बन जाता है कि वे भक्तों की हर जरूरत की पूर्ति करें । प्रभु स्वतः ही ऐसा करते हैं ।
इसलिए प्रभु की निष्काम भक्ति और प्रभु से निस्वार्थ रिश्ता, इन दोनों को जीवन में लाना चाहिए तभी हमारा मानव जीवन सफल होगा । मानव जीवन की सफलता के लिए हमें ऐसा करना चाहिए ।