लेख सार : प्रभु की अनुकम्पा जीवन में पाना नितान्त आवश्यक है । प्रभु की अनुकम्पा से जीवन में अनुकूलता आती है और उसकी स्थिरता रहती है और प्रतिकूलता हटती है । पूरा लेख नीचे पढ़ें -
आपके जीवन में जो भी अच्छा है, अच्छी घटना, अच्छे रिश्ते, अच्छा व्यापार इत्यादि वह सब कुछ प्रभु की अनुकम्पा के बल पर है । इस अनुकम्पा के लिए सदैव कृतज्ञता व्यक्त करते हुए प्रभु से नियमित प्रार्थना करते रहना चाहिए क्योंकि अनुकम्पा हटी तो प्रतिकूलता आक्रमण करने को तैयार खड़ी है ।
इसी तरह हमारे जीवन में जो कुछ भी बुरा है, दुःख है, दर्द है वह प्रभु की कृपा से वंचित होने के कारण है । प्रार्थना के बल पर प्रभु की कृपारूपी किरण जैसे ही उस दुःख, दर्द का स्पर्श मात्र करेगी तो वह बुराई, दुःख और दर्द टिक नहीं सकते । जैसे अंधकार प्रभु श्री सूर्यदेवजी की किरणों के आगे टिक नहीं सकता वैसे ही बुराई, दुःख और दर्द प्रभु की अनुकम्पा के आगे टिक नहीं सकते ।
सुख और दुःख दोनों ही अवस्था में निरंतर प्रभु से प्रार्थना करना इसलिए नितान्त अनिवार्य है । क्योंकि प्रार्थना के बिना हमारी अनुकूलता बनेगी नहीं और प्रतिकूलता हटेगी नहीं ।
हमें प्रार्थना इसलिए करनी चाहिए कि प्रभु ने हमें माता के गर्भ से मनुष्य रूप में जन्म दिया है । माता के स्तनों में हमारे जन्म से पूर्व ही अमृततुल्य दूध भेजा है । माता पिता को हमारा मंगल करने के लिए ममता देकर नियुक्त किया है । एक निरोगी शरीर हमें दिया है । मस्तिष्क में बुद्धि दी है और अच्छे बुरे की समझ दी है । जीवन में अच्छा परिवार, अच्छा व्यापार और अच्छी प्रतिष्ठा दी है । इन सभी अनुकम्पाओं के लिए प्रभु से नियमित रूप से प्रार्थना करनी चाहिए और अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करनी चाहिए । नियमित प्रार्थना करते रहने से यह अनुकूलता नियमित रूप से बनी रहेगी ।
पर अगर हमारे जीवन में बुराइयां हैं जैसे बुरा स्वास्थ्य, बुरा आचरण, बुरी सोच और दुःख, क्लेश है जैसे परिवार का दुःख, व्यापार का दुःख तो भी हमें प्रभु की नियमित प्रार्थना करनी चाहिए क्योंकि यह सभी बुराइयां, दुःख और दर्द प्रभु की अनुकम्पा से वंचित होने के कारण है । ऐसा नहीं है कि प्रभु हम पर अनुकम्पा नहीं करते पर हम उस अनुकम्पा को ग्रहण करने की पात्रता नहीं बना पाए हैं । जैसे इंटरनेट की तरंगें हर तरफ है पर उन्हें पकड़ने के लिए एक उपकरण की जरूरत होती है वैसे ही प्रभु की अनुकम्पा हर तरफ है पर उसे पाने के लिए भक्ति की जरूरत होती है । प्रभु अनुकम्पा की तरंगों को हमने अपने जीवन में उतार लिया तो हमारे जीवन में हमारी बुराई, दुःख और दर्द टिक नहीं पाएंगे ।
जो सुख और दुःख दोनों ही अवस्था में प्रभु की भक्ति करता है उसके अमंगल स्वतः ही नष्ट हो जाते हैं और मंगल उसके जीवन में उतर आता है । गोस्वामी श्री तुलसीदासजी ने श्री रामचरितमानसजी की अमर चौपाई "मंगल भवन अमंगल हारी" में यही बात बतलाई है । प्रभु मंगल के भवन हैं और अमंगल को हरने वाले हैं ।
प्रभु अनुकम्पा जीवन में उतारने का सबसे सरल साधन भक्ति है । भक्ति के बल पर हम तुरंत प्रभु की अनुकम्पा पा सकते हैं । ऐसे कितने ही भक्त चरित्र हैं जिन्होंने भक्ति के बल पर प्रभु की अनुकम्पा पाई है । प्रभु अनुकम्पा पाने का भक्ति से सरल साधन इस कलियुग में अन्य कोई नहीं है ।
प्रभु से यही प्रार्थना करनी चाहिए कि भक्ति का दान हमें मिले । प्रभु श्री हनुमानजी पर जब भी प्रभु श्री रामजी प्रसन्न हुए तो प्रभु श्री हनुमानजी ने सदैव उनसे भक्ति का ही दान मांगा । सुन्दरकाण्डजी में एक प्रसंग आता है कि जब लंका जलाकर प्रभु श्री हनुमानजी वापस आए और अभिमान रहित रहे और श्री जाम्बवन्तजी ने प्रभु श्री हनुमानजी के लंका दहन और भगवती सीता माता की खोज की बात प्रभु श्री रामजी को बताई तो प्रभु श्री रामजी बोले कि मैं प्रभु श्री हनुमानजी से उऋण नहीं हो सकता । प्रभु श्री रामजी ने प्रभु श्री हनुमानजी से कहा कि मुझसे वर मांगो तो प्रभु श्री हनुमानजी ने प्रभु श्री रामजी से उनकी भक्ति मांगी ।
हमें भी प्रभु की अनुकम्पा को जीवन में उतारने के लिए प्रभु की भक्ति करनी चाहिए । प्रभु की अनुकम्पा जीवन में उतरेगी तो अनुकूलता आएगी और प्रतिकूलता जीवन से हटेगी । इसलिए प्रभु से यह प्रार्थना जीवन में करनी चाहिए कि भक्ति का दान इस मानव जीवन में हमें अवश्य मिले । भक्ति का दान प्रभु द्वारा दिया जाने वाला सबसे बड़ा दान है । भक्ति से बड़ा सामर्थ्य किसी अन्य साधन में नहीं है । इसलिए प्रभु से यही प्रार्थना करनी चाहिए कि भक्ति का दान मिले जिससे जीवन में प्रभु की अनुकम्पा आए और अनुकूलता स्थिर रहे और प्रतिकूलता हटे ।