लेख सार : प्रभु की करुणा और दया रूपी दृष्टि हम पर पड़े ऐसा भक्ति रूपी साधन हमें अपने मानव जीवन में अवश्य करना चाहिए तभी मानव जीवन की सार्थकता है । पूरा लेख नीचे पढ़ें -
प्रभु के जो श्रीनेत्र हैं उनमें से पहला श्रीनेत्र करुणारूपी है और दूसरा श्रीनेत्र दयारूपी है । उन दोनों का कार्य ही करुणा और दया बरसाना है । इन दोनों श्रीनेत्रों से प्रभु जिधर भी देखते हैं उधर करुणा और दया की वर्षा होती है । जिस भी जीव पर प्रभु के श्रीनेत्रों की दृष्टि पड़ती है उस पर करुणा और दया की अनुकम्पा हो जाती है ।
प्रभु का स्वभाव है कि वे करुणा और दया बरसाते हैं । वे जिस भी जीव को देखते हैं करुणा और दया की दृष्टि से ही देखते हैं ।
हमें जरूरत है कि हम भक्ति के द्वारा प्रभु के देखने योग्य बनें । हम उतनी पात्रता लाएँ कि प्रभु की दृष्टि हम पर पड़े । जैसे स्कूल में कोई विद्यार्थी अच्छी पढ़ाई करता है या अच्छे नम्बर लाता है तो शिक्षक की दृष्टि उस पर जाती है वैसे ही हम जीवन में भक्ति करें और सत्कर्म करें तो प्रभु की दृष्टि हम पर पड़ जाएगी ।
प्रभु की दृष्टि गई तो स्वतः ही प्रभु की करुणा और दया की वर्षा हमारे ऊपर होगी । प्रभु सभी जीवों को दृष्टा के भाव से देखते हैं ।
एक संत ने तो यहाँ तक कह दिया कि प्रभु सभी जीवों पर समान रूप से करुणा और दया की वर्षा करते हैं । पर हमारी पात्रता नहीं होती कि हम उसको ग्रहण कर सकें । जैसे वर्षा के समय एक जगह दो घड़े रखे हुए हैं । पहला घड़ा सीधा रखा हुआ है यानी उसका मुँह खुला है । दूसरा घड़ा उल्टा रखा हुआ है यानी उसका मुँह बंद है । अब दोनों पर समान रूप से वर्षा हो रही है । पहला घड़ा जिसका मुँह खुला है और सीधा रखा हुआ है उसमें जल इकट्ठा हो जाएगा और वहीं पास पड़ा दूसरा घड़ा जिसका मुँह बंद है और उल्टा रखा हुआ है उसमें जल की एक बूँद भी नहीं भरेगी । इसी तरह जो जीव भक्ति द्वारा प्रभु से जुड़ जाते हैं वे प्रभु की करुणा और दया की वर्षा की बूंदों को पा जाते हैं । पर जो प्रभु से विमुख हैं वे प्रभु की करुणा और दया की वर्षा की बूंदों को नहीं पाते ।
इसलिए जीव को चाहिए कि भक्ति से प्रभु से जुड़े । भक्ति उस भक्त में पात्रता लाती है कि वह प्रभु की करुणा और दया को प्राप्त कर सके ।
प्रभु का तीसरा श्रीनेत्र कालरूपी है । वे जब इस तीसरे श्रीनेत्र को खोलते हैं और जिसको भी देखते हैं उसका काल आ जाता है । देवों के देव प्रभु श्री महादेवजी की वह कथा सबको ज्ञात होगी जब प्रभु ने अपना तीसरा श्रीनेत्र खोला और श्री कामदेवजी भस्म हो गए ।
इस तरह प्रभु के करुणा और दया के दो श्रीनेत्र और कालरूपी तीसरा श्रीनेत्र । करुणा और दया रूपी दो श्रीनेत्र प्रभु के सदैव खुले रहते हैं । कालरूपी श्रीनेत्र बंद रहता है । जब जरूरत पड़ती है तभी कालरूपी श्रीनेत्र प्रभु खोलते हैं । पर करुणा और दया रूपी दोनों श्रीनेत्र सदैव खुले रहते हैं यानी करुणा और दया की वर्षा प्रभु हर समय करते ही रहते हैं ।
भक्त के अंदर भक्ति ऐसा आकर्षण पैदा कर देती है कि प्रभु की दृष्टि स्वतः ही भक्त पर पड़ जाती है । प्रभु की दृष्टि गई तो प्रभु की करुणा और दया की तत्काल वर्षा भक्त पर स्वतः ही हो जाती है ।
हमें जीवन में सिर्फ यह लक्ष्य बनाना चाहिए कि भक्ति से एवं सद्गुणों के संचार से प्रभु की दृष्टि हम पर पड़े । प्रभु की दृष्टि पड़ते ही हमारा कल्याण तत्काल हो जाता है ।
जैसे एक पिता अपने नवजात बच्चे को करुणा और दया के भाव से देखता है वैसे ही परमपिता अपने भक्तों को करुणा और दया की दृष्टि से ही देखते हैं ।
हमारे नेत्र प्रभु पर टिक जाएँ और संसार की जगह हमें प्रभु दिखने लग जाएँ तो हमारा कल्याण होगा । यह भक्ति के द्वारा ही संभव है । जब भक्त के नेत्र प्रभु पर टिक जाते हैं तो प्रभु की दृष्टि भी भक्त पर पड़ती है । दृष्टि पड़ते ही प्रभु के श्रीनेत्रों से करुणा और दया की वर्षा होती है और भक्त का इस करुणा और दया को पाकर कल्याण हो जाता है ।
इसलिए जीवन में अविलम्ब भक्ति को लाना चाहिए जिससे हममें यह पात्रता आए और प्रभु की दृष्टि हम पर पड़ सके । प्रभु की दृष्टि हम पर पड़ी तो यह मानव जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि होती है । प्रभु की दृष्टि हम पर नहीं पड़ी तो हमारा मानव जीवन ही व्यर्थ चला गया, ऐसा मानना चाहिए । इसलिए प्रभु के श्रीनेत्रों की दृष्टि हम पर पड़े इसके लिए भक्तिरूपी साधन हमें तत्काल करना चाहिए ।