लेख सार : निष्काम भक्ति का सामर्थ्य इतना बड़ा है कि प्रभु भक्त के बंधन में आ जाते हैं । जो निष्काम भक्ति कर प्रभु से कुछ नहीं चाहता और प्रभु से केवल प्रभु को ही चाहता है, वही श्रेष्ठ है । पूरा लेख नीचे पढ़ें -
कोई प्रभु को डर के कारण पूजता है कि कहीं अमंगल न हो जाए । कोई प्रभु को किसी कामना के कारण पूजता है क्योंकि उसे धन, पुत्र, पौत्र, सम्पत्ति और ऐश्वर्य की आकांक्षा होती है । पर प्रभु ऐसे भक्त का इंतजार करते हैं जो उन्हें निष्काम भक्ति के कारण पूजता हो ।
प्रभु को डर के कारण पूजने वालों की संख्या बहुत होती है । आपको हर शनिवार प्रभु श्री शनिदेवजी के यहाँ उनके मंदिर में लोग मिलेंगे जो डर के कारण वहाँ आते हैं कि प्रभु श्री शनिदेवजी के ढैय्या या साढ़े साती के कारण उनका अमंगल नहीं हो । किसी ज्योतिष ने उनके भीतर डर पैदा कर दिया कि आप ऐसा नहीं करेंगे तो विपदा आती जाएगी । डर के कारण ऐसे लोग प्रभु को पूजते हैं । इसमें कोई बुराई नहीं क्योंकि किसी भी बहाने प्रभु को वे पूजते तो हैं ।
दूसरे वे लोग होते हैं जो किसी कामना की पूर्ति के लिए प्रभु को पूजते हैं । किसी को धन-सम्पत्ति की कामना होती है, किसी को पुत्र पौत्र की कामना होती है, किसी को ऐश्वर्य की कामना होती है, तो किसी को पद-प्रतिष्ठा की कामना होती है । उन्हें पता होता है कि सभी कामनाओं की पूर्ति करने वाले एकमात्र प्रभु ही हैं । इसलिए विभिन्न कामनाओं के लिए विभिन्न लोग प्रभु का पूजन करते हैं । ऐसे लोगों की संख्या भी सबसे ज्यादा होती है जो कामनाओं की पूर्ति के लिए प्रभु का पूजन करते हैं ।
दो श्रेणियां हमने देखी जो प्रभु का पूजन करती है । पहली, डर के कारण और दूसरी, कामना पूर्ति के कारण । अब आइए वह श्रेणी देखते हैं जिसकी मात्रा सबसे कम होती है पर वे प्रभु को सबसे प्रिय होते हैं ।
यह श्रेणी है ऐसे भक्तों की जो निष्काम भक्ति के कारण प्रभु को पूजते हैं । उन्हें प्रभु से कुछ नहीं चाहिए होता है । उन्हें प्रभु से प्रभु ही चाहिए होते हैं । वे प्रभु से कुछ नहीं चाहते मात्र प्रभु से प्रभु को ही चाहते हैं । प्रभु ऐसे निष्काम भक्तों के बंधन में आ जाते हैं जो प्रभु से प्रभु की ही चाहत रखते हैं । प्रभु से कुछ नहीं चाहना और प्रभु से प्रभु को ही चाहना - यह उन भक्तों की श्रेष्ठ भक्ति का आधार होता है ।
प्रभु डरने वाले लोगों का डर दूर करते हैं । उनके अमंगल को मंगल में परिवर्तित कर देते हैं । प्रभु कामना करने वाले की कामना की पूर्ति कर देते हैं । यह दोनों बातें प्रभु तत्काल करते हैं ।
पर निष्काम भक्ति के कारण जो प्रभु को प्रभु से चाहते हैं उनकी पूर्ति थोड़ी कठिन होती है क्योंकि ऐसे भक्तों के बंधन में प्रभु को आना पड़ता है ।
एक संत ने एक सुन्दर उपमा देकर इसे समझाया है । मान लीजिए कि एक बहुत बड़ा व्यक्ति हवाई अड्डे पर हवाई जहाज से उतरा हो और अपने चहेते लोगों से मिल रहा हो । उनके गले लग रहा हो और उसी समय एक भिखारी कटोरा लेकर भीख मांगने आ जाए, तो वह बड़ा व्यक्ति उसको दूर करने के लिए तत्काल अपनी जेब से कुछ सिक्के निकाल कर उसे दे देगा ताकि वह अपने चहेते लोगों से मिलना जारी रख सके और वह भिखारी उसमें बाधा नहीं बने । ऐसे ही प्रभु जब अपने निष्काम भक्तों से मिलते हैं और प्रेम करते हैं तो जो कामना की पूर्ति के लिए मांगने आ जाते हैं ऐसे लोगों को प्रभु तत्काल उनकी इच्छा के अनुरूप दे देते हैं जिससे उनका विघ्न नहीं पड़े और प्रभु अपने निष्काम भक्तों के साथ रमते रहें ।
निष्काम भक्ति सबसे बड़ी और श्रेष्ठतम भक्ति है क्योंकि इससे प्रभु स्वयं भक्त के बंधन में आने पर बाध्य हो जाते हैं ।
इसलिए जीव को जीवन में निष्काम भक्ति ही करनी चाहिए । इसका दूसरा कारण यह भी है कि प्रभु परमपिता हैं । उन्हें हमारी जरूरत का पता हमसे भी ज्यादा होता है । इसलिए तो उन्होंने श्रीमद् भगवद् गीताजी में निष्काम भक्तों के योगक्षेम वहन करने की घोषणा की हुई है ।
एक छोटे से उदाहरण से इस तथ्य को समझे । एक सेठजी के दो नौकर हैं । पहला, सेवा तो ठीक करता है पर वर्ष में एक दो बार वेतन बढ़ाने की मांग करता है । दूसरा नौकर पहले से भी बढ़िया सेवा करता है और कभी भी अपने मुँह से वेतन बढ़ाने की बात नहीं करता । उस सेठजी का मन दूसरे नौकर के लिए ज्यादा होगा जो सेवा तो अधिक करता है और मांगता कुछ भी नहीं ।
ऐसे ही प्रभु उन भक्तों पर ज्यादा कृपा करते हैं जो भक्ति तो बहुत करते हैं पर बदले में मांगते कुछ भी नहीं । भक्ति करके कुछ मांगा तो वह भक्ति नहीं रहकर व्यापार बन गया । यह तो ऐसा ही हुआ कि हमने भक्ति की और उसे भुना लिया ।
इसलिए जीवन में सच्ची भक्ति करनी चाहिए जो कि निष्काम भक्ति है जिसमें प्रभु से कुछ भी मांग नहीं हो ।