श्री गणेशाय नमः
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प्रभु प्रेरणा से लेखन द्वारा चन्द्रशेखर करवा

लेख सार : प्रभु के द्वार में प्रवेश छोटा बनने से ही मिलता है । इसलिए प्रभु के द्वार में प्रवेश पाने के लिए हमें अपने अहंकार को गला कर छोटा बनना चाहिए । पूरा लेख नीचे पढ़ें -



जैसे एक छोटे कद का आदमी किसी भी दरवाजे से कहीं भी प्रवेश कर सकता है वैसे ही जो अपने को छोटा बना लेता है वह प्रभु के द्वार में प्रवेश कर पाता है ।


जब तक हम बड़े बने रहेंगे तब तक हम प्रभु के द्वार में प्रवेश नहीं पा सकते । छोटे बनने से ही प्रभु के द्वार में प्रवेश पा सकते हैं ।


एक संत ने इसकी बहुत सुन्‍दर व्याख्या की । जैसे हम बहुत सारा सामान लेकर हवाई जहाज में नहीं चढ़ सकते, हमें अपने सामान के वजन को सीमित रखना पड़ता है वैसे ही बहुत सारे वजन को लेकर हम प्रभु के पास नहीं पहुँच सकते । हम जितने हल्‍के होंगे उतनी प्रभु तक हमारी पहुँच बढ़ जाएगी ।


हमारे भार में सबसे बड़ा भार अहंकार का होता है । व्‍यक्ति धन के कारण अहंकारी हो जाता है । व्‍यक्ति ज्ञान के कारण अहंकारी हो जाता है । व्‍यक्ति पद के कारण अहंकारी हो जाता है । व्‍यक्ति प्रतिष्‍ठा एवं लोकप्रियता के कारण अहंकारी हो जाता है और यहाँ तक कि व्‍यक्ति को भक्ति का भी अहंकार आ जाता है ।


प्रभु को अहंकार एकदम पसंद नहीं है । अहंकार का भार लेकर हम प्रभु के द्वार पहुँच भी नहीं सकते । अहंकार लेकर प्रभु तक पहुँचने की कल्‍पना करना भी मूर्खता है ।


प्रभु स्‍पष्‍ट शब्‍दों में कहते हैं कि भार रहित होकर हल्‍के होकर आओ तभी मेरे दरवाजे तुम्‍हारे लिए खुलेंगे ।


छोटा बनने के बड़े फायदे हैं । सबसे बड़ा फायदा है कि अहंकार खत्‍म हो जाता है जो प्रभु तक पहुँचने के लिए सबसे बड़ी बाधा है । छोटा बनते ही हमारा अहंकार स्वतः ही खत्‍म हो जाता है । अपने आपको बड़ा मानने पर ही अहंकार पनपेगा । अपने को छोटा मानते ही अहंकार खत्‍म हो जाता है ।


एक संत ने एक बड़े धनवान, ज्ञानवान, पद, प्रतिष्‍ठा वाले व्‍यक्ति को सार्वजनिक या घर के मंदिर में सफाई करने की यानी झाड़ू और पोछा लगाने की हिदायत दी । यह अहंकार को कम करने का एक बड़ा अच्‍छा माध्‍यम है । क्‍योंकि जिसके घर में खूब सारे नौकर चाकर हो वह स्‍वयं प्रभु के मंदिर में सार्वजनिक रूप से चाकरी करे तो उसका अहंकार खत्‍म होता है । शिवालय में प्रायः आपको बहुत सारे भक्‍त देखने को मिलेंगे जो सफाई करते हैं । यह अहंकार को कम करने का एक बहुत सटीक एवं बढ़िया उपाय है ।


सबसे बड़े भक्‍त भक्‍तशिरोमणि प्रभु श्री हनुमानजी ने भी दास भक्ति को स्‍वीकार किया । दास भक्ति में अहंकार का कोई स्‍थान ही नहीं बचता । प्रभु स्‍वामी हैं और सेवक दास है तो फिर जैसे एक नौकर को कोई अहंकार नहीं होता वह झाड़ू पोछा करता है, जूठे बर्तन माँजता है वैसे ही दास भक्‍त को हर तरह की प्रभु सेवा करने में कोई परहेज नहीं होता । हर तरह की प्रभु सेवा करने पर अहंकार गलता है । अहंकार गला और हम प्रभु तक पहुँचने के लिए उपयुक्‍त बन जाते हैं ।


सारांश यह है कि छोटा बनने से प्रभु के यहाँ प्रवेश मिलेगा अन्‍यथा जन्‍मों-जन्‍मों तक प्रभु के द्वार में प्रवेश नहीं मिल पाएगा ।


इसलिए जीव को अपने आपको छोटा बनाने की आदत डालनी चाहिए । इसके लिए प्रभु की दास भक्ति एक बहुत सटीक साधन है । हमें प्रभु की दास भक्ति करनी चाहिए जिससे स्वतः ही हम छोटे बन सकें और अहंकार रहित हो जाएँ ।


भक्‍तशिरोमणि प्रभु श्री हनुमानजी ने अपने श्रीचरित्र में दास भक्ति करके अहंकार रहित होकर प्रभु तक पहुँचने का मार्ग सबको दिखाया है । जब वे भगवती सीता माता की खोज में लंका जा रहे थे तो समुद्र में देवताओं द्वारा भेजी सुरसा आई जो उनके अहंकार की परीक्षा लेने आई थी । यह अहंकाररूपी उनकी परीक्षा थी । सुरसा ने अपने मुँह को चौड़ा किया, प्रभु श्री हनुमानजी ने भी अपना आकार दुगुना बढ़ाया, फिर सुरसा ने अपने मुँह को ओर बढ़ाया तो प्रभु श्री हनुमानजी ने भी अपना आकार फिर दुगुना किया और तभी वे छोटे से बनकर सुरसा के मुँह में प्रवेश कर वापस निकल आए । संतों ने इस प्रसंग की सुन्दर व्याख्या की और बताया कि पराक्रम में प्रभु श्री हनुमानजी बड़े बने और फिर छोटा रूप लेकर बताया कि यह पराक्रम मेरे प्रभु श्री रामजी का है, मेरी क्षमता तो मेरा छोटा-सा रूप मात्र है ।


इसलिए हमें छोटे बनकर दास भक्ति के द्वारा प्रभु तक पहुँचने के मार्ग पर आगे बढ़ना चाहिए ।