श्री गणेशाय नमः
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प्रभु प्रेरणा से लेखन द्वारा चन्द्रशेखर करवा

लेख सार : आज अधिकतर लोग प्रभु से कुछ मांगने मंदिर जाते हैं । पर सच्‍चे भक्‍त प्रभु से कुछ नहीं मांगते हैं । वे प्रभु से प्रभु को ही मांगते हैं जो कि भक्ति की एक बहुत ऊँ‍‍ची अवस्‍था है । पूरा लेख नीचे पढ़ें -



सच्‍चे भक्‍त प्रभु से कुछ नहीं मांगते । प्रभु से बस कहते है कि जैसा आपको उचित लगे वैसा करें क्‍योंकि उन्‍हें पता होता है कि प्रभु परमपिता हैं । जैसे एक सांसारिक पिता को सर्वदा अपने बच्‍चों के हित का पता होता है और जैसे एक सांसारिक पिता को अपने बच्‍चों का हित सर्वदा प्रिय होता है और उसी अनुरूप वह सांसारिक पिता व्‍यवहार करता है । वैसे ही परमपिता को अपने भक्‍तों का हित अपने भक्तों से ज्‍यादा पता होता है और उसी अनुरूप ही प्रभु उस भक्‍त के हित का व्‍यवहार करते हैं ।


आज अधिकतर लोग प्रभु से कुछ मांगने मंदिर जाते हैं । पर सच्‍चा भक्‍त प्रभु से कुछ नहीं मांगता । सच्‍चे भक्‍त को एक बात का विश्‍वास होता है जिस कारण वह कुछ नहीं मांगता । उसे विश्‍वास होता है कि प्रभु अन्तर्यामी हैं एवं सर्वसमर्थ हैं और अपने भक्‍तों का सर्वदा हित करने वाले हैं । ऐसे में उसे मांगने की कोई आवश्‍यकता नहीं । मांगा उससे जाता है जिसे आपकी जरूरत का पता नहीं हो । प्रभु तो अन्तर्यामी हैं, उनसे कुछ छुपा नहीं है ।


अगर प्रभु से कुछ मांगना हो तो प्रभु से प्रभु को ही मांगें । सच्‍चे भक्‍त ऐसा ही करते हैं । प्रभु से प्रभु को ही मांगना - यह भक्ति की एक बहुत ऊँ‍‍ची अवस्‍था है । बहुत सारे भक्‍त ऐसे हुए हैं जिन्‍होंने प्रभु से जीवन भर कुछ नहीं मांगा सिर्फ प्रभु से प्रभु को ही मांगा ।


प्रभु ऐसे भक्‍त के बंधन में आ जाते हैं । वैसे प्रभु सर्वदा स्‍वतंत्र हैं, वे किसी के बंधन में नहीं पर जब भक्‍त अपने जीवन की बाजी लगाकर सच्‍ची भक्ति करता है और प्रभु से प्रभु को मांगता है तो प्रभु खुशी-खुशी उसके बंधन में आ जाते हैं ।


दो सिद्धांत हमें जीवन में ध्‍यान में रखने चाहिए । पहला, प्रभु से कोई सांसारिक वस्‍तु की मांग मत करें । प्रभु की सच्‍ची भक्ति करें । जीवन की हर जरूरत की पूर्ति एक पिता की तरह प्रभु करते चले जाएंगे । दूसरा, जीवन में भक्ति को पनपने दें और जब भक्ति परिपक्‍व हो जाए तो प्रभु से प्रभु को मांगें ।


जरा सोचें कि आप बहुत सामर्थ्‍यवान हैं और कोई नौकर आपकी बहुत वर्षों से श्रेष्‍ठ सेवा कर रहा है और अन्‍त में आपकी सम्‍पत्ति न मांग कर आपका सानिध्य मांगता है तो आपको कितना अच्‍छा लगेगा । वैसे ही प्रभु से कोई अन्‍य चीज नहीं मांग कर जो प्रभु से प्रभु को मांगते हैं प्रभु को वे भक्‍त सबसे प्रिय लगते हैं ।


किसी भी भक्‍त की जीवनी उठा कर देखें । उन्‍होंने भक्ति की और भक्ति को किसी मांग से भुनाया नहीं । भक्ति के एवज में कुछ नहीं मांगा ।


प्रभु की पूजा करना और फिर प्रभु से कुछ मांगना यह एक व्‍यापार है । ऐसा करने वाले पर भी प्रभु अनुकम्‍पा कर उसे देते हैं पर यह छोटी मोटी उपलब्धि है । सर्वोच्च उपलब्धि तो प्रभु से कुछ नहीं मांगना है । जब हमारी कोई मांग नहीं होती है तो यह प्रभु की जिम्मेदारी हो जाती है कि वे हमारा ज्‍यादा ख्‍याल रखें । प्रभु ने श्रीमद् भगवद् गीताजी में अपने अमर वाक्‍य में इसी तथ्‍य को दोहराया है कि भक्‍तों की योगक्षेम का वहन मैं (प्रभु) स्वतः करता हूँ । यहाँ ध्‍यान देने योग्‍य शब्‍द है "स्वतः" । प्रभु से कोई अनुरोध, आग्रह नहीं करना पड़ता, वे स्वतः ही भक्‍तों के योगक्षेम का वहन करते हैं ।


भक्‍तराज श्री सुदामाजी ने प्रभु से कुछ नहीं मांगा और प्रभु ने उन्‍हें देने में कोई कसर नहीं छोड़ी । श्री सुदामाजी मांगते तो जितना वे मांगते उतना प्रभु उन्‍हें दे देते पर नहीं मांगा तो प्रभु ने इतना दिया जिसकी हम कल्‍पना भी नहीं कर सकते । फिर अगली बात भी महत्‍वपूर्ण है कि श्री सुदामाजी ने उन सभी को इस शर्त पर स्‍वीकार किया कि उसका प्रभाव उन पर नहीं हो और वे निरंतर प्रभु भक्ति में ही रमते रहें । उन्‍होंने जीवन में प्रभु से कुछ नहीं मांगा सिर्फ प्रभु से प्रभु को ही मांगा और उन्‍हें सांसारिक सम्‍पत्ति भी मिली और प्रभु भी मिले ।


प्रभु से कुछ नहीं मांगना भक्ति की शुरुआती अवस्‍था है और प्रभु से प्रभु को ही मांगना भक्ति की परिपक्‍व अवस्‍था है ।


प्रभु से कुछ नहीं मांगने की आदत डालकर हमें भक्ति की शुरुआती अवस्‍था का आरम्‍भ अपने जीवन में अविलम्‍ब करना चाहिए ।