श्री गणेशाय नमः
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प्रभु प्रेरणा से लेखन द्वारा चन्द्रशेखर करवा

लेख सार : माया में फंसने से मानव जीवन व्‍यर्थ हो जाता है । प्रभु भक्ति से ही मानव जीवन के उद्देश्य की पूर्ति होती है । पूरा लेख नीचे पढ़ें -



प्रभु की माया हमें प्रभु से दूर करने के लिए है । माया का कार्य ही है कि हमें प्रभु से दूर करना । माया "जीव" और "शिव" का मिलन नहीं होने देती । माया एक तरह से हमारी परीक्षा लेती है और इस परीक्षा में उत्‍तीर्ण होने पर ही हम प्रभु तक पहुँच सकते हैं ।


किसी भी विषय में सफलता प्राप्‍त करने के लिए परीक्षा देनी पड़ती है । वैसे ही प्रभु के पास पहुँचने के लिए माया रूपी परीक्षा देनी होती है । माया रूपी परीक्षा में उत्‍तीर्ण हुए तो ही प्रभु के पास पहुँच सकते हैं । माया रूपी परीक्षा में उत्‍तीर्ण होने का मतलब क्‍या है ? माया के बीच रहकर, माया में न उलझ कर अगर हम प्रभु भक्ति करने में सफल होते हैं तो प्रभु के द्वार हमारे लिए खुल जाते हैं ।


जैसे बड़ी परीक्षा में उत्‍तीर्ण होने पर भाग्‍य के द्वार खुल जाते हैं वैसे ही माया की परीक्षा में उत्‍तीर्ण होने पर सबसे बड़ा द्वार यानी प्रभु का द्वार खुल जाता है ।


प्रभु माया रूपी परीक्षा क्‍यों लेते हैं ? प्रभु माया रूपी परीक्षा लेकर यह देखना चाहते हैं कि क्‍या इसे पार करके, इसमें बिना उलझे जीव मुझ तक पहुँचने की इच्‍छा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है । या फिर माया से भ्रमित होकर प्रभु से दूर हो जाता है ।


प्रभु को परीक्षा लेने का अधिकार है । प्रभु के पास कौन कौन पहुँच सकता है इसके लिए परीक्षा है । परीक्षा सिर्फ मानव जीवन में ही होती है । अन्‍य योनियों में नहीं होती । मानव जीवन में सभी इस परीक्षा का हिस्‍सा होते हैं चाहे वह अमीर हो या गरीब या किसी भी धर्म, देश और रंग के क्‍यों न हो ।


परीक्षा में उत्‍तीर्ण होने के लिए हमें पढ़ाई करनी पड़ती है । माया की परीक्षा में उत्‍तीर्ण होने के लिए हमें भक्ति करनी पड़ती है । अगर हमने मानव जीवन इहलोक हेतु कमाई करके व्‍यर्थ कर दिया तो हममें और पशु-पक्षी में क्‍या अंतर है । मनुष्‍य जन्‍म तो वास्‍तव में इहलोक के साथ साथ परलोक की कमाई के लिए होता है । पर हम इस जन्‍म के लिए उपयोगी मुद्रा कमाते हैं और इस जन्‍म के बाद के लिए उपयोगी मणि कमाना भूल जाते हैं ।


इस जन्‍म हेतु ही मुद्रा कमाई तो फिर पशु-पक्षी से ज्‍यादा हमने मनुष्‍य जन्‍म लेकर क्‍या कमाया ? पशु-पक्षी भी इस जन्‍म हेतु भोजन और रहने की व्‍यवस्‍था की कमाई करते हैं । हमने भी अगर केवल खाने के लिए भोजन, रहने के लिए व्‍यवस्‍था और पहनने के लिए कपड़े की कमाई की तो पशु-पक्षी से ज्‍यादा हमने क्‍या किया ।


मानव जीवन हमें ऐसी कमाई करने हेतु नहीं मिला है । मानव जीवन हमें इस जन्‍म में काम आए और जन्‍म के बाद भी काम आए ऐसी कमाई करने हेतु मिला है । ऐसी कमाई हमने की तो यह हमें सदैव के लिए जन्‍म मरण के चक्‍कर से मुक्ति दे देगी ।


यह कमाई है भक्ति की कमाई क्‍योंकि भक्ति के बल पर ही परलोक का सुधरना और जन्‍म मरण के बंधन से मुक्ति संभव है ।


भक्ति की कमाई जीवन में करते हैं तो माया रूपी परीक्षा में हम उत्‍तीर्ण हो जाते हैं । जितनी-जितनी भक्ति जीवन में बढ़ती जाएगी माया का प्रभाव जीवन में उतना-उतना कम होता चला जाएगा ।


माया और भक्ति दोनों विपरीत हैं । माया का कार्य है हमें प्रभु से दूर करना और भक्ति का कार्य है हमें प्रभु के समीप ले जाकर प्रभु से मिला देना ।


प्रभु की माया रूपी परीक्षा में उत्‍तीर्ण होने का सबसे सफल उपाय भक्ति है । भक्ति होगी तो माया का प्रभाव नहीं होगा ।


भक्ति की कमाई सिर्फ मनुष्‍य जन्‍म में ही कर सकते हैं । इसलिए मानव जीवन को सफल करने का सबसे उत्‍तम उपाय है कि प्रभु की भक्ति करना ।


भक्ति की कमाई से मनुष्‍य जीवन तो सफल होगा ही, साथ ही आवागमन से सदैव के लिए मुक्ति मिल जाएगी । भक्ति सीधे हमें प्रभु तक पहुँचा देती है ।


इसलिए जीवन में अविलम्‍ब माया का साथ छोड़कर भक्ति का मार्ग पकड़ना चाहिए जिससे मानव जीवन को सफल किया जा सके । मानव जीवन का उद्देश्य ही भक्ति होनी चाहिए ।