लेख सार : प्रभु से बड़ा रचनाकार और प्रभु से कुशल प्रबंधन करने वाला और कोई भी नहीं है । प्रभु के प्रबंधन के कारण ही सब कुछ मर्यादा में रहते हैं । पूरा लेख नीचे पढ़ें -
प्रभु का प्रताप देखें कि सभी जीव चाहे वह जलचर हो, थलचर हो, नभचर हो या वनस्पति हो सबका पेट रोजाना भरते हैं । सभी खाली पेट उठते हैं और पेट भर कर फिर सोते हैं । उठने पर खरबों खरबों जीवों के भोजन की व्यवस्था प्रभु करते हैं । जलचर को जल में भोजन मिलता है, थलचर और नभचर को थल में भोजन मिलता है । वनस्पति अपनी जगह से हिल नहीं सकते, भोजन तलाशने इधर उधर जा नहीं सकते तो उन्हें खड़े खड़े ही उनको उनका भोजन पृथ्वी माता, श्री सूर्यदेवजी एवं जल के माध्यम से प्राप्त होता है ।
बच्चा जन्म लेता है उससे पहले प्रभु उसकी माता के स्तनों में दूध भेज देते हैं । माता के दूध को अमृत तुल्य माना गया है और गरीब से गरीब बच्चा और अमीर से अमीर बच्चे को यह अमृत बिना भेदभाव के प्रभु उपलब्ध करवाते हैं । माता के स्तनों में पहले दूध नहीं होता पर जब बच्चा गर्भ में आता है और नौ माह पूरा करके बाहर आता है तब स्तनों में स्वतः दूध आ जाता है ।
इतनी सुन्दर प्राकृतिक रचना है प्रभु की और इतना सुन्दर प्रबंधन है जिसके बहुत सारे रहस्य अभी भी विज्ञान की पहुँच के बाहर है । हमारे शरीर की रचना देखें । हमारी आँतें इतनी लम्बी है कि पच्चीस फीट तक जा सकती है । वह हमारे पेट में इस तरह से बैठाई गई है कि देखकर आश्चर्य होता है । हमारे मस्तिष्क की नसें इतनी बारीक है कि आँखों से दिखाई नहीं देती । पर वे शरीर के हर हिस्से का संकेत मस्तिष्क तक पहुँचाती है और मस्तिष्क के हर आदेश को शरीर के अंगों तक पहुँचाती है । हमारा हृदय बिना रुके धड़कता रहता है । क्या कोई मशीन बिना रुके 80 वर्षों तक निरंतर चल सकती है ? कदापि नहीं । पर मनुष्य का हृदय मनुष्य के सोते जागते निरंतर चलता रहता है । मनुष्य जब जन्म लेता है तब से मनुष्य की मृत्यु तक वह निरंतर बिना विश्राम, बिना रुके चलता ही रहता है ।
कितना भी प्रदूषित जल हो पर जब वह भूमि के अंदर जाएगा तो स्वतः छनता-छनता स्वच्छ होता चला जाएगा । भूतल से जल को निकाला जाता है तो सदैव स्वच्छ जल ही निकलता है ।
श्री सूर्यदेवजी के ताप से जल की बूंद भाप बनकर उठती है और वर्षा के रूप में पुनः बरसती है । प्रभु से बड़ा रचनाकार और प्रभु से कुशल प्रबंधन करने वाला और कोई भी नहीं है ।
जरा कल्पना करें कि एक बड़ी गेंद पर कुछ रखकर उसे घुमाया और परिक्रमा कराई जाए तो वहाँ रखी चीज तुरंत गिर जाएगी । पर पृथ्वी माता निरंतर घूम और परिक्रमा कर रही है फिर भी इमारत स्थिर खड़ी रहती है । कुछ हिलता या गिरता नहीं ।
पृथ्वी माता पर समुद्रदेव का जल अपनी मर्यादा में रहता है, वायु अपनी मर्यादा में चलती है । श्री सूर्यदेवजी अपनी सही दूरी में रहते हैं । अगर श्री सूर्यदेवजी थोड़े से नजदीक आ जाए तो तापमान इतना बढ़ जाएगा और श्री सूर्यदेवजी अगर थोड़े दूर चले जाए तो ठंड इतनी बढ़ जाएगी की जीव उसे सहन नहीं कर पाएगा ।
एक छोटी-सी इमारत के तापमान को नियंत्रित करने के लिए हमें कितने उपकरण लगाने पड़ते हैं और कितना श्रम करना पड़ता है । पर प्रभु पूरे भूमंडल का तापमान चार ऋतुओं के माध्यम से कितनी सहजता एवं सरलता से नियंत्रित करते हैं । एक दिन वर्षा हुई और भूमंडल का तापमान कितने ही डिग्री कम हो जाता है । एक दिन तेज धूप निकली और भूमंडल का तापमान कितने डिग्री बढ़ जाता है ।
कितने अदभुत आश्चर्यों से यह जग भरा पड़ा है । यह सब प्रभु के ऐश्वर्य और सामर्थ्य के दर्शन हमें कराते हैं । यह सब प्रभु के कुशलतम प्रबंधन के दर्शन हमें कराते हैं जो कितना सहज और सरल है पर साथ ही कितना सटीक भी है ।
प्रभु से बड़ा प्रबंधक विश्व में कोई भी नहीं है । पूरे ब्रह्माण्ड का कितनी कुशलता से प्रभु प्रबंधन करते हैं जिससे सभी चीजें अपनी निर्धारित मर्यादा में रहती हैं । प्रभु का प्रबंधन कौशल श्रेष्ठतम है । प्रभु का ऐश्वर्य श्रेष्ठतम है । प्रभु का सामर्थ्य श्रेष्ठतम है । प्रभु के प्रबंधन के कारण ही सब कुछ मर्यादा में रहते हैं ।