लेख सार : जीवन में सब कुछ खो दें पर प्रभु को कभी नहीं खोना चाहिए । प्रभु जीवन में रहेंगे तो सब खोई चीजें जीवन में वापस मिल जाएगी । पर अगर प्रभु को खो दिया तो हमने सब कुछ खो दिया । पूरा लेख नीचे पढ़ें -
एक कहावत है कि अगर आपने रुपया खोया तो कम खोया, अगर आपने स्वास्थ्य खोया तो ज्यादा खोया और अगर आपने चरित्र खो दिया तो सब कुछ खो दिया ।
आध्यात्मिक दृष्टि से इसे ऐसे समझना चाहिए । अगर आपने धन खोया तो बहुत कम खोया, अगर आपने स्वास्थ्य खोया तो भी बहुत कम खोया, अगर आपने चरित्र खोया तो भी बहुत कम खोया पर अगर आपने प्रभु को अपने जीवन से खो दिया तो सब कुछ खो दिया ।
ऐसा क्यों ? क्योंकि धन की चाबी प्रभु के हाथ में है । प्रभु के खजांची श्री कुबेरजी हैं । मालिक जिसे बोलेगा मुनीम उसी को धन देगा । वैभव की देवी भगवती लक्ष्मी माता प्रभु की सेवा करती हैं, प्रभु इच्छा का फल देती है । जहाँ प्रभु जाते हैं माता वहाँ साथ जाती हैं । प्रभु श्री नारायणजी की सेवा करने पर भगवती लक्ष्मी माता स्वतः ही जीवन में आ जाती हैं । उन्हें अलग से बुलाना नहीं पड़ता । श्रीलक्ष्मीनारायण के रूप में भगवती लक्ष्मी माता प्रभु श्री नारायणजी के साथ स्वतः ही आती है । इससे स्पष्ट है कि धन की चाबी प्रभु के हाथ में है ।
स्वास्थ्य की चाबी भी प्रभु के हाथ में है । दवा हम ले सकते हैं, इलाज हम करवा सकते हैं पर इलाज का लगना यानी इलाज का सफल होना प्रभु के हाथ में होता है । बहुत बड़े डॉक्टर कठिन से कठिन ऑपरेशन करके जब मरीज के परिजन से बात करते हैं तो एक अंगुली ऊपर प्रभु की तरफ इंगित कर देते हैं । उनका संकेत स्पष्ट होता है कि हमने अपना काम कर दिया है, अब आगे क्या होगा यह प्रभु की इच्छा । क्योंकि आई.सी.यू (ICU) में मरीज के जटिल ऑपरेशन के बाद क्या होगा यह उन्हें भी पता नहीं होता । अच्छे भले ठीक हो रहे मरीज चल बसते हैं और अत्यन्त गंभीर जटिल मरीज चमत्कार से ठीक हो जाते हैं । डॉक्टर अक्सर देखते हैं कि अच्छा भला मरीज चला जाता है और हारा हुआ मरीज ठीक हो जाता है । इसलिए अच्छे डॉक्टर अपनी एक अंगुली प्रभु की तरफ करके स्पष्ट संकेत देते हैं कि इलाज करना हमारा काम है पर स्वास्थ्य देना प्रभु का कार्य है । इससे यह स्पष्ट होता है कि स्वास्थ्य की चाबी भी प्रभु के हाथ में है ।
इसी तरह चरित्र की चाबी भी प्रभु के हाथ में होती है । प्रभु कृपा जीवन में रहेगी तो चरित्र का पतन जीवन में होगा ही नहीं । एक स्पष्ट सिद्धांत है कि अगर जीव प्रभु कृपा जीवन में बनाए रखेंगे तो चरित्र का पतन कभी नहीं होगा । किसी का चरित्र प्रारब्धवश पतित हो भी जाता है तो प्रभु का नाम पुनः उसका उत्थान कर देता है । संत अजामिलजी की कथा इसका जीवन्त उदाहरण है । संत अजामिलजी एक पंडित थे, नित्य पूजन-हवन-भजन किया करते थे । एक गलत दृश्य देखा और पतित हो गए । माता-पिता को घर से निकाल दिया, पत्नी को घर से निकाल दिया और वेश्याओं के साथ रहने लगे । गांववालों ने उनका बहिष्कार किया और गांव से बाहर कर दिया । एक संत ने उन्हें कहा कि अपने अगले पुत्र का नाम नारायण रख देना । उन्होंने ऐसा किया और पुत्र का नाम जीवन में पुकारने की आदत बन गई । अन्त समय जब यमदूतों को देखा तो डर कर पुत्र का नाम पुकारा । प्रभु के पार्षद आ गए और उन्होंने प्रभु का नाम पुकारा है यह कह कर उन्हें यमदूतों से बचा लिया । वे नर्क जाने से बच गए । फिर उन्होंने प्रभु नाम की महिमा जान अपना खोया चरित्र वापस अर्जित किया और प्रभु के भक्त बन गए । चरित्र पतन की पराकाष्ठा से प्रभु का एक नाम (वह भी अपने पुत्र को पुकारने हेतु लिया गया) अंतिम समय में उनका कैसे उत्थान करता है, यह स्पष्ट देखने को मिलता है । इससे स्पष्ट होता है कि चरित्र की चाबी भी प्रभु के हाथ में है ।
इसलिए जीवन में सब कुछ खो भी जाए पर प्रभु को मत खोएँ - हरि ना बिसारिए । प्रभु जीवन में हैं तो जैसे एक जादूगर पलभर में गेंद से फूलों की झड़ी बना देता है वैसे ही प्रभु हमें शून्य से शिखर पर ले जाते हैं ।
प्रभु से बड़ा जादूगर कौन है ? ब्रह्माण्ड को विज्ञान की आँखों से देखेंगे तो तर्क और सिद्धांतों में उलझ जाएंगे पर ब्रह्माण्ड को एक भक्त की आँखों से देखेंगे तो प्रभु के जादू का स्पष्ट दर्शन होगा । महासागर, आकाश, नक्षत्र, पर्वत, तारे, भूमंडल सब प्रभु के जादू का दर्शन कराते हैं जिन्हें आध्यात्म में प्रभु का ऐश्वर्य कहा गया है । सभी लय में स्थित हैं, सभी मर्यादा में रहते हैं, यह उस श्रेष्ठतम जादूगर के जादू की एक छोटी-सी झलक मात्र है ।
प्रभु को जीवन में रखें तो प्रभु का जादू जीवन में काम करेगा । इसलिए जीवन में कुछ भी चला जाए, सब कुछ जाने दें पर प्रभु जाने लगे तो प्रभु को रोक लें । प्रभु को रोक लिया तो सब कुछ बिन बुलाए ही वापस आ जाएगा । प्रभु कैसे रुकेंगे जीवन में - गलती होने पर पश्चाताप के दो सच्चे आंसू और जीवन में वह गलती (जिस कारण प्रभु हमसे दूर जा रहे थे) को जीवन पर्यन्त कभी भी नहीं दोहराने का सच्चा संकल्प । साथ ही प्रभु की भक्ति जिस कारण प्रभु हमसे कभी दूर नहीं होंगे ।
इसलिए जीवन में प्रभु भक्ति को लाना चाहिए जिससे हम जीवन में प्रभु को कभी न खोएँ ।