लेख सार : प्रभु की दया और कृपा अतुलनीय है । प्रभु निरंतर हमारे साथ रहते हैं और किसी को निमित्त बनाकर हम तक अपनी कृपा को सदैव पहुँचाते रहते हैं । पूरा लेख नीचे पढ़ें -
एक शहरी व्यक्ति ने अखबार में एक प्रसंग पढ़ा कि एक बुजुर्ग दम्पत्ति बड़ी कठिनाई से गांव में जीवन यापन कर रहा है । उस दम्पत्ति के दो बच्चे थे जो काल के ग्रास बन गए थे । इस सदमे से बुजुर्ग महिला ने अपना मानसिक संतुलन खो दिया था । गरीबी इतनी थी कि दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं होती थी । बुजुर्ग दम्पत्ति को गांव वालों ने गांव से बाहर कर दिया था क्योंकि मानसिक संतुलन खोई बुजुर्ग महिला कपड़े फाड़ती, मारपीट करती इसलिए उसे जंजीरों से बांध कर रखना पड़ता था । वह महिला दीन अवस्था में सुध बुध खोई पड़ी रहती थी । वे दोनों पति-पत्नी गांव से बाहर एक कुटिया में रहते थे । एक बकरी थी जिससे दूध मिल जाता था । पास में एक कुआं था जिससे पानी मिल जाता था । जूठा खाना कभी कभी गांव वाले उनकी कुटिया के बाहर फेंक जाते जिसे वे खा लेते थे ।
इस दयनीय स्थिति की एक रिपोर्ट अखबार में छपी । प्रेरित होकर शहर का एक व्यक्ति 350 किलोमीटर दूर उस गांव में गया । एक अनाज की बोरी, कुछ कपड़े उस दम्पत्ति को दिए और भविष्य में भी मदद करने का आश्वासन देकर लौट आया । उस व्यक्ति के मन में उस दम्पत्ति के लिए सहानुभूति जगी । पर जब वह शहर लौट आया तो अपनी दुनिया में रम गया । एक-दो महीने उसे वह वाकया याद रहा फिर धीरे-धीरे वह उसे भूल गया । सहानुभूति दब गई ।
जरा सोचें कि प्रभु भी अगर जीव की तरह हमारी विपदा भूल जाएं, सहानुभूति को दबा दें तो हमारा क्या हश्र होगा । नर और नारायण में यही फर्क होता है । नर कभी-कभी भलाई करता है और फिर भूल जाता है । नारायण सदैव भलाई करते हैं और कभी नहीं भूलते । नर की सहानुभूति जगती है फिर धूमिल हो जाती है । नारायण की सहानुभूति सदैव जागृत रहती है । नर किसी की सहायता करता है फिर हाथ खींच लेता है । नारायण किसी को सहायता पहुँचाते हैं और कभी अपना हाथ नहीं खींचते ।
उस बुजुर्ग दम्पत्ति का ही दृष्टान्त लें । वह शहरी व्यक्ति तो एक बार मिलकर, अनाज और कुछ कपड़े देकर भूल गया पर प्रभु कभी नहीं भूलते । प्रभु फिर किसी को प्रेरणा देते हैं और फिर मदद एवं सहायता उस दम्पत्ति तक पहुँचाते हैं । प्रभु किसी को निमित्त बनाकर बीमारी में उस दम्पत्ति को औषधि उपलब्ध करवाते हैं, भूख की अवस्था में भोजन उपलब्ध करवाते हैं और शीतकाल में शरीर को गर्म रखने के लिए किसी के माध्यम से कपड़े उपलब्ध करवाते हैं । ऐसा एक वर्ष नहीं, दो वर्ष नहीं, पूरे जन्म उस दम्पत्ति का ख्याल प्रभु रखते हैं । ऐसे एक दम्पत्ति का नहीं, विश्व के लाखों ऐसे दम्पत्ति का ख्याल प्रभु रखते हैं ।
अपने पूर्व जन्मों के कर्मों के कारण अगर कोई जीव इस जन्म में दयनीय अवस्था को प्राप्त करता है तो प्रभु उसका साथ कभी नहीं छोड़ते । विपदा में तो कभी नहीं छोड़ते । विपत्ति में तो प्रभु सदैव उसके साथ रहते हैं ।
प्रभु की कृपा देखें कि एक चींटी का भी ख्याल प्रभु रखते हैं । एक चींटी भूखी है और अन्न तलाश रही है । तभी प्रभु कृपा करते हैं और हमारे हाथ से एक बिस्कुट का टुकड़ा अनायास वहाँ गिर जाता है । हमारे हाथ से बिस्कुट का टुकड़ा गिरा, चींटी को मिला और उसके 10 दिन के भोजन की व्यवस्था हो गई । जरा सोचें कि हमारे हाथ से बिस्कुट का टुकड़ा वहीं क्यों गिरा जहाँ चींटी भोजन तलाश रही थी । यह प्रभु की प्रेरणा से हुआ । प्रभु को उस चींटी का पेट भरना था इसलिए वैसा हुआ ।
कितने कृपालु और दयालु हैं प्रभु जो सभी जीवों का पोषण करते हैं । जरा कल्पना करें कि असंख्य योनियां, असंख्य जीव और रोजाना उन सब का पोषण प्रभु करते हैं । उन सभी तक उनकी जरूरतों को प्रभु पहुँचाते हैं । निमित्त कोई भी बनता है पर देने वाले और पहुँचाने वाले तो मेरे प्रभु ही हैं ।
जरा कल्पना करें कि जैसे उस शहरी व्यक्ति ने एक बार सहानुभूति जता कर सहायता कर दी और फिर शहर लौट कर भूल गया, वैसे ही अगर प्रभु भी भूल जाएं तो उस दम्पत्ति की क्या अवस्था होगी ।
दिन के 24 घंटे, 365 दिन, जीवन भर, योनि दर योनि हमारा जीवन प्रभु की कृपा के कारण ही चलता है । प्रभु की कृपा का जीवन में कभी भी विस्मरण नहीं होना चाहिए । हमारी दृष्टि ऐसी होनी चाहिए कि हर प्रसंग में हमें प्रभु कृपा के दर्शन होने लगे ।