श्री गणेशाय नमः
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प्रभु प्रेरणा से लेखन द्वारा चन्द्रशेखर करवा

लेख सार : हर परिस्थिति में प्रभु को धन्‍यवाद देने की आदत जीवन में बनानी चाहिए । जब हम प्रभु कृपा के दर्शन हर परिस्थिति में करना सीख जाते हैं तो प्रभु के लिए सदैव हमारे हृदय से धन्‍यवाद निकलता है । पूरा लेख नीचे पढ़ें -



प्रभु को सदैव धन्‍यवाद देने की आदत जीवन में बनानी चाहिए । हम जीवन में व्‍यक्ति विशेष को धन्‍यवाद देते हैं पर परमपिता को धन्‍यवाद देना भूल जाते हैं ।


किसी भी अनुकूलता के लिए प्रथम धन्‍यवाद प्रभु को ही देना चाहिए । किसी भी प्रतिकूलता जिसे हम भोग पा रहे हैं उसे भोगने की शक्ति देने हेतु प्रभु को धन्‍यवाद देना चाहिए । प्रभु अनुकूलता को बढ़ाकर देते हैं और प्रतिकूलता को घटाकर देते हैं इसलिए धन्‍यवाद के पात्र हैं ।


जैसे किसी विपत्ति में हमें किसी व्‍यक्ति विशेष से सहयोग मिला तो हमें उस व्‍यक्ति को निमित्त मानकर असली सहयोग पहुँचाने वाले प्रभु के अदृश्य श्रीहाथों को देखने की कला आनी चाहिए, तभी प्रभु के लिए सच्‍चे मन से धन्‍यवाद निकलेगा । प्रभु ने श्रीमद् भगवद् गीताजी में स्‍पष्‍ट कहा है कि सभी को सभी कुछ देने वाले प्रभु हैं, निमित्त कोई भी बने पर देने वाले प्रभु के अलावा कोई नहीं । इसलिए सच्‍चा धन्‍यवाद प्रभु के लिए हृदय से सदैव निकलना चाहिए ।


सबसे पहला धन्‍यवाद प्रभु को स्वास्थ्य के लिए देना चाहिए क्‍योंकि जो बीमार है उससे पूछे स्वास्थ्य का क्‍या महत्‍व होता है । जो दिन भर बिस्‍तर पर लेटा स्‍वस्‍थ होने का इंतजार कर रहा है उसे पता होता है कि अस्‍वस्‍थता का एक-एक लम्‍हा बिस्‍तर पर पड़े एक-एक करवट लेना कितना कष्टदायक होता है । हम स्‍वस्‍थ हैं और अगली श्‍वास ले पा रहे हैं इसके लिए भी प्रभु को धन्‍यवाद देना चाहिए ।


अगली श्‍वास नहीं आए तो हमारी मृत्यु उसी क्षण हो जाएगी । अगली श्‍वास पति को नहीं आए तो 60 वर्ष से साथ रहने वाली पत्‍नी भी उसके पति के शरीर (लाश) का साथ छोड़ देती है । जो शरीर 60 वर्ष साथ रहा है उसे 6 घंटे भी घर पर कोई नहीं रखता । इसलिए प्रत्‍येक श्‍वास के लिए प्रभु को धन्‍यवाद देना चाहिए ।


अस्‍वस्‍थ व्‍यक्ति को भी प्रभु को धन्‍यवाद देने की आदत बनानी चाहिए क्‍योंकि उससे भी अस्‍वस्‍थ व्‍यक्ति दुनिया में मौजूद हैं । जिसे आँखों का रोग हो उसे शरीर के बाकी सभी अंगों के स्‍वस्‍थ होने के लिए प्रभु का धन्‍यवाद करना चाहिए ।


जब हम अपने से ज्‍यादा बीमार व्‍यक्ति को देखते हैं तो यह आभास तुरंत हो जाता है कि हमारी अवस्‍था उतनी दयनीय नहीं है । हम इतना सोचकर रह जाते हैं पर प्रभु को इसके लिए धन्‍यवाद देना भूल जाते हैं । ऐसे अवसर पर निश्चित ही प्रभु के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन होना चाहिए ।


प्रभु को धन्‍यवाद देने का एक सबसे अच्‍छा उपाय यह है कि हर माह किसी सरकारी अस्‍पताल के आई.सी.यू (ICU) में जाना चाहिए । वहाँ पड़े रोगी को देखेंगे तो निश्चित ही प्रभु को अपने को स्‍वस्‍थ रखने हेतु धन्‍यवाद देने का मन बनेगा । एक बार मन बना तो फिर धीरे-धीरे यह आदत बनती जाएगी । फिर हर प्रसंग को प्रभु से जोड़कर देखने की आदत और हर अनुकूलता का श्रेय प्रभु को देने की आदत बन जाएगी ।


स्वास्थ्य के बाद दूसरा धन्‍यवाद प्रभु को देना चाहिए कि हमें खाने के लिए रोटी उपलब्‍ध करवाई । तीसरा धन्‍यवाद तन ढ़कने को कपड़े दिए । चौथा धन्‍यवाद सिर के ऊपर छत प्रदान की । जरा उन्‍हें देखें जिन्‍हें पूर्व जन्‍मों के पापों के कारण दो वक्‍त की रोटी नसीब नहीं होती, पहनने को पूरे कपड़े नहीं होते और रात बिना छत के खुले आसमान के नीचे बितानी पड़ती है ।


स्वास्थ्य हेतु, भोजन हेतु, कपड़े हेतु, छत हेतु प्रभु को धन्‍यवाद देना चाहिए । पर यही पर रुकना नहीं चाहिए । हर प्रसंग, हर अनुकूलता, हर प्रतिकूलता में प्रभु कृपा के दर्शन करते हुए प्रभु को धन्‍यवाद देने की आदत जीवन में बनानी चाहिए । प्रभु को धन्‍यवाद देने की आदत अगर हम जीवन में बना लेते हैं तो जाने अनजाने इतने मौके, इतने कारण हमें प्रभु को धन्‍यवाद देने के लिए मिलने लगेंगे कि हम गदगद हो उठेंगे ।


जरूरत है तो बस प्रभु कृपा के दर्शन करने की दृष्टि विकसित करने की । हर प्रसंग में, हर अनुकूलता में, हर प्रतिकूलता में प्रभु कृपा को खोज निकालने की कला जिसने सीख ली वह जीवन में निरंतर प्रभु को धन्‍यवाद देता चला जाएगा । ऐसा करते-करते वह अपने मानव जीवन को सफल करता चला जाएगा ।


जन्‍म देकर गर्भ की विकट परिस्थिति से मुक्ति, माँ के निमित्त ममता का आंचल देना एवं माँ के स्तनों में अमृत तुल्‍य दूध उपलब्‍ध करवाना और इस प्रकार जन्‍म से मृत्यु तक अगणित प्रसंग ऐसे होते हैं जिसमें प्रभु कृपा के दर्शन हमें करना चाहिए और जिसके प्रत्‍येक के लिए हमें प्रभु को धन्‍यवाद देना चाहिए ।


प्रभु को धन्‍यवाद देना एक आदत बन जाए तो हमारा मानव जीवन सफल हो जाता है ।