लेख सार : अगर हमने बिना प्रभु भक्ति करे मानव जीवन व्यर्थ गंवा दिया तो हमारे जैसा दुर्भाग्यशाली और मूर्ख दूसरा कोई नहीं होगा । इसलिए मानव जीवन का सदुपयोग प्रभु भक्ति करके करना चाहिए । पूरा लेख नीचे पढ़ें -
प्रभु की भक्ति करने के लिए जीव को कुछ बुनियादी चीजों की जरूरत होती है जैसे सुरक्षा, भोजन, आवास इत्यादि जो कि मानव जीवन में उपलब्ध होती है । इसलिए मानव जीवन में हम भक्ति में अपने मन को रमा सकते हैं । यह पशु, पक्षी, वनस्पति की योनि में संभव नहीं ।
मैंने पक्षी योनि में कबूतर को बहुत करीब से देखा है । कबूतर को निष्पाप और सीधा सादा पक्षी माना जाता है । कबूतर प्रायः आपको मंदिरों के इर्द-गिर्द मिलेंगे । उन्हें दाना देने को पुण्य माना जाता है ।
पर मैंने देखा है कि कबूतर पानी पीने या दाना चुगने के समय कई बार इधर-उधर देखता है कि कोई असुरक्षा तो नहीं फिर वह ग्रास लेता है । इतनी असुरक्षा कि कोई बिल्ली या अन्य जानवर उसे मार न दें । पर इंसान ने अगर सात्विक जीवन जीया है तो वह भोजन निश्चिंत होकर खा सकता है । दूसरी बात, पक्षी को भोजन तलाशने रोज जाना पड़ता है । उसे सुबह सबसे पहली चिन्ता पेट भरने की होती है क्योंकि वह कोई संग्रह करके नहीं रखता । पर इंसान इतना संग्रह कर लेता है कि सुबह निश्चिंत हो कर भजन पूजन कर सके । गरीब व्यक्ति भी दो-तीन दिन का राशन तो अपने घर पर रखता है । इसलिए सुबह प्रभु की भक्ति करने का विकल्प उसके पास रहता है । तीसरा, पक्षी को आवास की भी चिन्ता रहती है । बड़े पक्षी या उनके ही जाति के बलवान पक्षी उनका आवास छीन लेते हैं । इंसान अपने आवास की रजिस्ट्री करवा कर निश्चिंत रहता है ।
सुरक्षा, भोजन और आवास की गारंटी सिर्फ मानव जीवन में ही संभव है । जलचर, थलचर, नभचर की किसी भी योनि में ऐसी गारंटी संभव नहीं । यह गारंटी इतनी महत्वपूर्ण होती है कि हमें निश्चिंत कर देती है । पशु, पक्षी इस गारंटी के अभाव में भटकते रहते हैं । सुबह प्रथम चिन्ता उन्हें सुरक्षा, भोजन और आवास की होती है । मनुष्य को ऐसी कोई चिन्ता नहीं होती अगर उसने सात्विक जीवन जीया है और सात्विक कमाई की है । अगर उसने ऐसा किया है तो उसे दो समय का भोजन, एक छोटी-सी छत और सुरक्षा प्राप्त रहती है । बेईमानी की कमाई करने वाले को असुरक्षा होती है, यहाँ तक की उसके दुश्मन भी बन जाते हैं पर सात्विक कमाई करने वाले के जीवन में सुरक्षा होती है ।
सुरक्षा, भोजन और आवास की व्यवस्था होने पर इंसान प्रभु की भक्ति करने के लिए सबसे उपयुक्त बन जाता है । इसलिए ही मानव जीवन को भक्ति के लिए श्रेष्ठ माना गया है । इसलिए ही मानव जीवन में भक्ति करने की प्राथमिकता बताई गई है । अन्य किसी भी योनि को भक्ति के लिए उपयुक्त नहीं माना गया है । इसलिए मानव जीवन में भक्ति की प्रबलता होनी चाहिए क्योंकि पशु, पक्षी या अन्य योनि में भक्ति का इतना श्रेष्ठ मौका नहीं मिलता ।
पर दुर्भाग्य देखें मनुष्य का कि अनैतिकता और बेईमानी के कारण अपने सोने से भी कीमती "सुरक्षा कवच" को वह खो देता है । वह अनैतिकता में लिप्त होकर बेईमानी की कमाई करता है, अन्याय करता है, किसी का अधिकार छीनता है और फिर दिन-रात असुरक्षा अनुभव करता है जैसे पशु पक्षी करते हैं । आपने बहुत सारे लोगों को असुरक्षा के कारण सुरक्षा बल अपने साथ रखते देखा होगा ।
दूसरा दुर्भाग्य देखें मनुष्य का कि वह इतना संग्रह करने के बाद भी संग्रह करता ही चला जाता है और इस कारण अशान्त हो जाता है । कितने लोग अपनी सात पीढ़ी तक के लिए संग्रह कर लेते हैं और उस धन को संभालने में इतना अशान्त हो जाते हैं कि फिर उन्हें शान्ति कभी जीवन में नहीं मिलती । ज्यादा धन को इकट्ठा करने में अशान्ति और ज्यादा धन को बचाए रखने में भी अशान्ति है ।
प्रभु ने हमें इतना उपयुक्त मानव जीवन भक्ति हेतु दिया था पर हम उसे व्यर्थ चक्करों में गंवा देते हैं । जिस मानव जीवन से हमें प्रभु भक्ति करनी चाहिए थी उसे हम असुरक्षा और अशान्ति की भेंट चढ़ा देते हैं । हम इतना असुरक्षित और अशान्त हो जाते हैं कि भक्ति करना हमारे लिए संभव नहीं होता । दूसरे शब्दों में कहे तो हम ही भक्ति मार्ग से दूर चले जाते हैं ।
मानव जीवन में जीव प्रभु भक्ति करके मोक्ष पा सकता था । चौरासी लाख जन्मों के चक्कर से सदैव के लिए मुक्त हो सकता था । सदैव के लिए प्रभु का सानिध्य पाकर परमानंद का अनुभव कर सकता था पर वह ऐसा कुछ भी नहीं कर पाता ।
मानव जीवन को संतों ने "मुक्ति योनि" कहा है यानी मुक्त होने की योनि पर जीव यहाँ आकर और बंधन में फंस जाता है । होना था उसे मुक्त पर आ गया वह और अधिक बंधन में ।
अपनी चादर मैली करके वह जन्म-मरण के चक्कर में फंसा रहता है । थोड़े पुण्य कमाता है तो कुछ समय के लिए स्वर्ग जाता है फिर वहाँ के भोग भोगकर उसे मृत्यु-लोक के लिए धक्का लगाया जाता है ठीक वैसे ही जैसे एक पांच सितारा होटल में रुकने के बाद जेब खाली होने पर निकाल दिया जाता है । अपने जीवन में अर्जित पाप को भोगने के लिए वह नर्क की यात्रा करता है और यातनाएं सहता है ।
मनुष्य का इस तरह कर्म बंधन चलता रहता है और कर्म के जाल में फंसकर कर्मों के अनुकूल और प्रतिकूल फलों को वह भोगता चला जाता है । अपने कर्मफल को भोगने के लिए वह अलग-अलग योनियों में जन्म लेता है जिन्हें भोग-योनि कहते हैं ।
मानव जीवन मनुष्य के लिए कितना सुन्दर अवसर था इन सबसे बचने का, सदैव के लिए कर्म के जंजाल से मुक्त होने का पर हम मानव जीवन का सदुपयोग नहीं कर पाते । मानव जीवन में बिना भक्ति किए हम जैसे खाली हाथ आए थे, वैसे ही खाली हाथ वापस चले जाते हैं । हम भक्ति से अपनी झोली भर सकते थे पर हमने माया से अपनी झोली भरने की गलती कर ली और इस तरह अपने मानव जीवन को हमने व्यर्थ गंवा दिया ।
इसलिए जब मानव जीवन मिला है तो प्रभु भक्ति में इसका उपयोग करना ही श्रेष्ठ साधन है । मानव जीवन में आकर प्रभु भक्ति करना वैसा ही है जैसा सागर में उतर कर मोती चुन कर लाना । मानव जीवन में आकर माया में फंसना वैसा ही है जैसे सागर में उतर कर कंकड़ चुग कर लाना ।
सुरक्षा, भोजन और आवास की गारंटी मिलने पर भी अगर हमने बिना प्रभु भक्ति करे मानव जीवन व्यर्थ गंवा दिया तो हमारे जैसा दुर्भाग्यशाली और मूर्ख दूसरा कोई नहीं होगा । इसलिए मानव जीवन का सदुपयोग प्रभु भक्ति करके ही करना चाहिए ।