श्री गणेशाय नमः
Devotional Thoughts
Devotional Thoughts Read Articles सर्वसामर्थ्यवान एवं सर्वशक्तिमान प्रभु के करीब ले जाने वाले आलेख (हिन्दी एवं अंग्रेजी में)
Articles that will take you closer to OMNIPOTENT & ALMIGHTY GOD (in Hindi & English)
Precious Pearl of Life श्रीग्रंथ के श्लोकों पर छोटे आलेख (हिन्दी एवं अंग्रेजी में)
Small write-ups on Holy text (in Hindi & English)
Feelings & Expressions प्रभु के बारे में उत्कथन (हिन्दी एवं अंग्रेजी में)
Quotes on GOD (in Hindi & English)
Devotional Thoughts Read Preamble हमारे उद्देश्य एवं संकल्प - साथ ही प्रायः पूछे जाने वाले प्रश्नों के उत्तर भी
Our Objectives & Pledges - Also answers FAQ (Frequently Asked Questions)
Visualizing God's Kindness वर्तमान समय में प्रभु कृपा के दर्शन कराते, असल जीवन के प्रसंग
Real life memoirs, visualizing GOD’s kindness in present time
Words of Prayer प्रभु के लिए प्रार्थना, कविता
GOD prayers & poems
प्रभु प्रेरणा से लेखन द्वारा चन्द्रशेखर करवा

लेख सार : प्रभु हमें भवसागर में बचाने के लिए सदैव तैयार हैं । इसलिए हमें जीवन में प्रभु भक्ति अर्जित कर भवसागर से पार होने का साधन समय रहते तैयार करना चाहिए । पूरा लेख नीचे पढ़ें -



प्रभु के तारने से हम भवसागर से तर जाते हैं और प्रभु के छोड़ते ही हम भवसागर में डूब जाते हैं ।


श्री रामचरितमानसजी के एक दृष्टान्त की व्याख्या संत करते हैं । जब सागर को पार करने हेतु सेतु बनाने के लिए पत्‍थर डाले गए तो पत्‍थर डूब गए । फिर भक्‍त शिरोमणि प्रभु श्री हनुमानजी ने उन पत्‍थरों पर श्रीराम नाम लिखा । फिर उन्‍हें समुद्र में छोड़ा गया तो वे तैरने लगे । यह कथा क्‍या बताती है ? प्रभु नाम नहीं था तो पत्‍थर डूब गए और प्रभु नाम था तो वे स्‍वभाव के विपरीत तैरने लगे, डूबे नहीं ।


यही बात मानव के साथ भी लागू होती है । अगर प्रभु नाम की पूंजी हमारे पास नहीं होगी तो हमारा भवसागर में डूबना पक्‍का है और अगर प्रभु नाम की पूंजी साथ है तो भवसागर से तिरना पक्‍का है और इस तरह डूबने से बच जाएंगे ।


पत्‍थर बड़े कठोर होते हैं और भारी भी होते हैं । हम मनुष्‍य भी काम, क्रोध, मद, लोभ की कठोरता से जकड़े हुए होते हैं एवं पापों के भयंकर भार से भारी होते हैं । हमारा भवसागर में डूबना एकदम पक्‍का है । बचने का एकमात्र वही उपाय है जो मेरे प्रभु श्री हनुमानजी ने करके दिखाया । श्रीराम नाम लिख दिया कठोर और भारी पत्‍थरों पर । हम भी प्रभु का नाम अपने भीतर लिख लेवें तो भवसागर में वैसे तैरेंगे जैसे सेतु निमार्ण के समय पत्‍थर तैरे थे ।


काम, क्रोध, मद, लोभ की कठोरता पूरी तरह से कम कर पाना संभव नहीं । पापमुक्‍त होकर भारमुक्‍त होना भी पूरी तरह संभव नहीं । कलियुग में तो बिल्कुल भी संभव नहीं । हम कितना भी सात्विक जीवन जी लें फिर भी काम, क्रोध, मद, लोभ के छींटे हमारे दामन में पड़ेंगे ही । उदाहरण स्‍वरूप हमने सात्विक जीवन जिया, जो बिरले ही जी पाते हैं, तो इसी बात का मद यानी अहंकार हो जाएगा । ऐसे ही पाप भी कुछ मात्रा में हुए बिना नहीं रहेंगे ।


मानवरूपी पत्‍थर को भव पार करना है तो दो ही उपाय हैं । पहला उपाय कि काम, क्रोध, मद, लोभ एवं अन्‍य विकारों से बचें एवं पाप के भार से बचें । हम पत्‍थर की तरह कठोर और भारी न होकर फूल की तरह कोमल और हल्‍के हो जाएंगे तो भवसागर तर जाएंगे । ऐसा करने के लिए भक्ति का सहारा लेना पड़ेगा क्‍योंकि विकारों को मिटाने के लिए और पाप आचरण से बचने के लिए यही एकमात्र साधन है । जैसे ही प्रभु में प्रेमाभक्ति बढ़ती है विकार एक-एक करके भागते हैं । बुराइयों की जगह अच्छाइयां लेती है । अवगुणों की जगह गुण विद्यमान होते हैं । भक्ति के आते ही पुण्यों की संख्‍या बढ़ने लगती है और पाप क्षीण होने लगते हैं । भक्ति के बिना अन्‍य कोई भी तरीके से ऐसा होना कतई संभव नहीं । शुद्धिकरण का सबसे बड़ा स्त्रोत भक्ति है जिससे विकार मिटते हैं और जीव पाप करने से बचता है ।


मानवरूपी पत्‍थर को भव से पार करने का दूसरा उपाय यह है कि काम, क्रोध, मद, लोभ इत्‍यादि विकारों की कठोरता लिए एवं पाप का भार लिए हुए भी प्रभु का नाम अपने भीतर लिख दें तो फिर हम डूबने से बच जाएंगे । प्रभु के नाम में इतनी अदभुत शक्ति होती है कि वह बड़े से बड़े विकारों को, बड़े से बड़े पापों को नष्‍ट कर डालती है । हम इतने विकार या इतने पाप जन्म−जन्मान्तर में भी इकट्ठा नहीं कर सकते जितना प्रभु नाम में उसे भस्म करने की क्षमता होती है । प्रभु का नाम पूर्व संचित विकारों एवं पापों की शुद्धि करता है एवं नए विकार और पापों को पनपने नहीं देता । इस तरह हमारा दोहरा शुद्धिकरण होता है यानी पुराना साफ होता है ओर नया बनता नहीं ।


श्री रामचरितमानसजी में एक प्रसंग वर्णित नहीं है पर अन्यत्र यह प्रसंग वर्णित है । संतों ने व्‍याख्‍या की है कि एक बार सेतु निर्माण के दौरान जब प्रभु श्री रामजी ने देखा कि मेरे नाम से पत्‍थर तैर रहे हैं तो दूर जाकर प्रभु ने भी स्‍वयं अपने श्रीहाथों से एक पत्‍थर सागर में छोड़ा । उस पर प्रभु ने अपना नाम नहीं लिखा था और उसे अपने श्रीहाथों से छोड़ा था तो वह डूब गया । प्रभु श्री रामजी ने प्रभु श्री हनुमानजी से इसका कारण पूछा । भक्‍त शिरोमणि प्रभु श्री हनुमानजी ने इस प्रसंग की बड़ी अदभुत व्‍याख्‍या की और कहा कि प्रभु जिसने आपके नाम का सहारा नहीं लिया और जिसे आपने छोड़ दिया वह तो डूबेगा ही ।


प्रभु किसी को भी नहीं छोड़ते । दुर्भाग्य का पुतला मनुष्‍य ही प्रभु का साथ छोड़ देता है और प्रभु को भूल जाता है । कितनी सही व्‍याख्‍या है कि जिसने प्रभु को बिसरा दिया, प्रभु को भुला दिया, वह तो डूबेगा ही ।


व्‍याख्‍या बड़ी स्‍पष्‍ट है कि प्रभु के श्रीहाथों से छोड़ने पर पत्‍थर डूब गया और प्रभु नाम लिखने से पत्‍थर तैर गया ।


प्रभु श्री हनुमानजी भक्‍तों के शिरोमणि हैं और भक्तिभाव से उन्‍होंने पत्‍थरों पर श्रीराम नाम लिखा । इस श्रीलीला का तात्‍पर्य क्‍या है ? तात्‍पर्य यह है और श्रीलीला यह बताती है कि मेरे प्रभु श्री हनुमानजी हमें भक्ति से अपने हृदय में प्रभु नाम लिखने को कहते हैं । इससे हम जीवन में निश्‍चिंत हो जाएंगे और निश्‍चित ही भवसागर से भी तर जाएंगे ।


पर मानव का दुर्भाग्य देखें कि अपने हृदय में इतनी चीजों को हमने भर रखा है, इतना मैला कर रखा है, इतना कठोर कर रखा है कि प्रभु के विराजने के लिए वह अनुकूल ही नहीं है । इसे साफ करने का, शुद्ध करने का भक्ति ही एकमात्र उपाय है । भक्ति से अंतःकरण का शुद्धिकरण होते ही वहाँ प्रभु का आगमन होता है ।


मानव जीवन पाकर विकारों की कठोरता से जकड़े हुए और पाप के भार से लदे हुए हमें धिक्‍कार है । हमने भवसागर में डूबने हेतु पूरे साधन तैयार कर रखें हैं, स्‍वयं को डुबाने के लिए तैयार कर रखा है । इतने पर भी हमारा ध्‍यान इस बात की तरफ नहीं जाता और हम मौज से अपना जीवन यापन करने में लगे हैं । यह मौज वैसी ही है जैसे मदिरा पीने पर होती है । मदिरा हमारे शरीर का कितना नुकसान करती है यह हमें पता नहीं होता और हम उसकी मौज में खोए रहते हैं । वैसे ही विकार और पाप हमारा कितना नुकसान करते हैं इसका हमें पता नहीं होता फिर भी इनके मौज में हम खोए रहते हैं ।


हमें जरूरत है कि अविलम्‍ब भक्ति से इन विकारों को धोकर, पाप से मुक्‍त होकर, हृदय में प्रभु नाम अंकित करके भवसागर को निश्चित होकर पार करने का साधन इस मानव जीवन में तैयार कर लेना जिससे अंत समय पछताना न पड़े ।