लेख सार : प्रभु कृपा का इतना बड़ा सामर्थ्य होता है कि वह प्रतिकूलता में भी अनुकूलता का सुख प्रदान करती है । इसलिए प्रभु कृपा जीवन में अर्जित नहीं कर पाने के दुर्भाग्य से बड़ा कोई दुर्भाग्य नहीं है । पूरा लेख नीचे पढ़ें -
प्रभु की कृपा होती है तो आप कांटो पर भी सोएं तो भी कांटे नहीं चुभेगें । यानी हमारी नियति या भाग्य से उत्पन्न परिस्थिति अगर हमें कांटो पर भी सुलाए तो भी कांटे नहीं चुभेगें । इससे ठीक विपरीत अगर हम प्रभु कृपा जीवन में अर्जित नहीं कर पाए या प्रयास की कमी के कारण प्रभु कृपा से वंचित रह गए तो हम फूल पर भी सोएं तो फूल भी हमें चुभन देंगे ।
इसका जीवन्त उदाहरण भगवती मीराबाई हैं । भक्ति में डूबी और प्रभु कृपा की चादर ओढ़े भगवती मीराबाई को राणा ने न जाने कितने दुःख दिए, उन्हें मारने का कितना प्रयास किया पर फिर भी भगवती मीराबाई का सुकून तक नहीं छीन पाया । राणा ने विष भेजा, भगवती मीराबाई गटागट प्रभु नाम स्मरण कर पी गई और जहर अमृत बन गया । इसका ही प्रभाव था कि अंत समय भगवती मीराबाई को कलेवर सहित प्रभु अपने धाम ले गए क्योंकि वे अमृत पीकर अमर हो गई थी । भगवती मीराबाई को विषैला सर्प भेजा गया तो वे प्रभु का रूप (श्री शालिग्रामजी) बन गए । भगवती मीराबाई को विषैले कांटो की शय्या पर सुलाया गया पर वे कांटे फूल बन गए । राणा कष्ट दे देकर थक गया, उसकी सारी खुमारी उतर गई । राणा का मान जाता रहा पर भगवती मीराबाई का बाल भी बांका नहीं हुआ ।
प्रभु कृपा का प्रभाव इन भजन की पंक्तियों में स्पष्ट देखने को मिलता है "जानकीनाथ सहाय करें जब, कौन बिगाड़ करें नर तेरो" । जब प्रभु कृपा करते हैं तो जग में किसकी ताकत है कि कोई आपका कुछ बिगाड़ कर सके । सभी ग्रह, नक्षत्र अनुकूल हो जाते हैं, विपरीत फल देने वाले ग्रह और नक्षत्र भी हमारा मंगल करने पर आतुर हो जाते हैं । पूरा विश्व शत्रु हो जाए, इतने अनगिनत शत्रु जिनकी तारों की तरह गणना भी संभव नहीं हो, तो भी वे सब मिलकर भी हमारा बाल बांका नहीं कर सकते । इतनी बड़ी सामर्थ्य प्रभु कृपा की है ।
प्रभु कृपा के प्रत्यक्ष दर्शन हमें श्री प्रह्लादजी के चरित्र में भी होते हैं । श्री प्रह्लादजी राक्षस कुल में जन्में थे पर प्रभु के बड़े भक्त थे और बचपन में ही प्रभु कृपा अर्जित कर ली थी । उनके पिता द्वारा दुःख देने और मृत्यु देने के इतने प्रयास के बाद भी श्री प्रह्लादजी का बाल भी बांका नहीं हुआ । उन्हें सर्पों के बीच छोड़ा गया या हाथी से कुचलाया गया पर सभी प्रयास व्यर्थ गए । पहाड़ से फेंका गया तो प्रभु बचाने को नीचे तैयार खड़े थे और गिरते हुए श्री प्रह्लादजी को प्रभु ने अपनी बाहों में भर लिया । सबसे बड़ा उदाहरण होलिका द्वारा आग में जलाने के प्रयास का है जिसके कारण बुराई पर अच्छाई के विजय का सूचक होली का त्यौहार मनाया जाता है । इस प्रसंग की संतों ने बड़ी सुन्दर व्याख्या की है कि जब होलिका ने वरदान में मिली अपनी चादर ओढ़कर, जिससे वह आग में नहीं जल सके, श्री प्रह्लादजी को अपनी गोदी में जकड़कर बैठी तो सभी दिशाओं से जोरदार वायु चली । चादर को जोर से पकड़ने के बावजूद चादर उड़ गई और वायु के वेग के कारण प्रचंड हुई आग में होलिका क्षणभर में जल गई । श्री प्रह्लादजी बच गए और जब उन्हें उनके मित्रों ने आग के ताप के बारे में पूछा तो श्री प्रह्लादजी ने कहा कि आग मुझे शीतलता और ठंडक दे रही थी । यहाँ प्रभु कृपा का प्रभाव स्पष्ट दिखता है कि दुःख देने वाली चीजें सुख देने लगती है । आग जलाती नहीं, कांटे चुभन नहीं देते, सर्प का विष मौत नहीं देता, प्रकृति को विपरीत होने पर मजबूर सिर्फ प्रभु कृपा ही कर सकती है ।
दो पौराणिक उदाहरणों के बाद अब देखें कि अगर हम जीवन में प्रभु कृपा के अलावा सब कुछ यानी वैभव, धन, सम्पत्ति अर्जित कर भी लेते हैं तो क्या होता है । एक वर्तमान का उदाहरण देखें की एक अमीर उद्योगपति के चार पुत्र हैं । उद्योगपति ने खूब धन, सम्पत्ति की जीवन भर कमाई की है । सभी उल्टे सीधे काम किए हैं । गलत आदतों के कारण बीमार रहने लगा और अंतिम वर्षों में वह बिस्तर में लेटा हुआ देखता है कि दवाइयां काम नहीं कर रही, रिएक्शन कर रही हैं । बेटे उसके मौत का इंतजार कर रहें हैं कि बूढ़ा कब मरे और सम्पत्ति का विभाजन हो सके । सम्पत्ति के लिए लड़ाईयां, मन-मुटाव बच्चों में अभी से शुरू हो चुका है । यह सब देखकर और अपनी बीमारी के चलते, मखमल के बिस्तर पर, आलीशान बंगले में भी इलाज-दवाइयों की पूरी क्षमता लगाने पर भी उसे बेहद बेचैनी है, शारीरिक कष्ट है, मानसिक संताप है और रात-रात भर नींद नहीं आती है । यह उदाहरण है कि अगर हम जीवन में प्रभु कृपा अर्जित नहीं कर पाए यानी सिर्फ धन, सम्पत्ति ही अर्जित की तो हम फूल पर भी सोएं यानी मखमल के बिस्तर पर सोएं तो वह भी हमें चुभन देंगे, तड़पाएंगे, सोने नहीं देंगे ।
सार यह है कि कांटो का नहीं चुभना केवल प्रभु कृपा के अर्जन के कारण संभव होता है । सार यह है कि फूलों का चुभना केवल प्रभु कृपा जीवन में अर्जित नहीं कर पाने के कारण ही होता है । दोनों परिस्थितियों में प्रभु कृपा ही एकमात्र कारण है जो कि हमें उपरोक्त उदाहरणों में स्पष्ट देखने को मिलता है । भगवती मीराबाई और भक्तराज श्री प्रह्लादजी को कांटे नहीं चुभे तो यह मात्र और मात्र प्रभु कृपा अर्जित कर पाने के कारण हुआ और उद्योगपति को फूल जैसा मखमल भी चुभने लगा तो इसका कारण मात्र और मात्र प्रभु कृपा से वंचित रहने के कारण क्योंकि जीवन में वह धन, सम्पत्ति अर्जित करने में ही रह गया और प्रभु कृपा अर्जित करना भूल गया ।
इसलिए प्रभु कृपा अर्जन हेतु सदा प्रयासरत रहना चाहिए क्योंकि प्रभु कृपा से वंचित रहना जीवन का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है और जीवन में प्रभु कृपा अर्जित कर पाना ही जीवन का सबसे बड़ा सौभाग्य है । इसलिए हमारा प्रयास सौभाग्यशाली होने के लिए होना चाहिए जिसके लिए प्रभु कृपा जीवन में अर्जित करने की अनिवार्यता है ।